श्री गाँधी चरित मानस | Shree Gandhi Charit Manas

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Shree Gandhi Charit Manas by विद्याधर महाजन - Vidyadhar Mahajan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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২৬১ 2 मंगलाचरण । देशवन्दना - ब्यापक ब्रह्म एक अबिनासी , बिलु बरन स्नायु अतनु सुखरासी ¦ पापरहित सुचि परम कमीसा , अज अनिकार बिभू जगदीसा ॥ नियमवान सिरजे जग सारा , सकल पदारथ सुबिधि .संषारा । सत चित अर आनन्द सहावा , जा कर मेद्‌ काह नहिं पावा ॥ न्यायसील अरु परमदयाल्ला , प्रनतपाल्त पातक जिन घाला । दुखनासक सुखदायक स्वामी , पापतापहर अन्तरजामी ॥ पुन्य - प्रभाउ ईस जगराया , सब जग मोह रही तुव माया । भिरचि जगत पाले अरु घाल , साजन-हित दानव-हिय साले ॥ तेजपुंज परमेस्वर , पूरन परमानन्द | त॒व प्रसाद पावहुं प्रभो , कविता सक्ति अमन्द ॥१॥ तुच प्रसाद निरथन नुप होई , भूष अधन संपति सव खोई । तुव प्रसाद मृग केदरि मरे, छुद्र मसक गजराज पदर ॥ तुव प्रसाद लोचन लदि अधा , लखत समोद सकल जगधंधा । त॒व प्रसाद गिरिसेखर पंगू, धाबहि तुरत रहत जग दंगू ॥ तुच प्रसाद पावत गिर मका, पेखत मावु-प्रभा जड घूका। (गांधि'-बिमलजसजलधि अपारा, हौं प्रय लघु इक मीन बिचारा ॥ चरित अथाह थाह किमि पावो , मृद्‌ जथामति गुनगन गावौ | अस करि कृपा देहु वरदाना , कारज सफल होय भगवाना | 'विचयाधर' मतिमंद हों , 'गांधि-चरन-रस - लीन | तुव प्रसाद्‌ बल पाय के , 'चरिता-रचन चित दीन ॥२॥




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