मानव ह्रदय की कथाएँ | Manav Hriday Ki Kathayein

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Manav Hriday Ki Kathayein by मदन गोपाल जी - Madan Gopal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पएलेकजैडर ११सड़कपर, जुलाइंके सूर्यका प्रचेड प्रकाश इस समय अत्यन्त निर्देयता- पूर्वक पढ़ रहा था । राहके दोनों ओर बने हुए छोटे-छोटे घर, घाममे भुन-से रहे थे और कुत्ते तक घरोंकी छायामें पडे हुए पटरियोपर जहाँ तहों सो रहे थे। ऐसे कुसमयमें, दम फूछ जाने पर भी, बेचारे एलेकर्जेंडरने नदी- की ओर जानेवाली छायायुक्त सडकपर जब्दसे पहुँचनेके लिए বারি चरुना भ(रभ किया ।श्रीमती सैरेमबैछ इस समय सो गईं थीं और उनके सिरपर छगे हुए श्वेत छातेकी तानोंके कभी कभी ऊग जानेसे, उस सहिष्णु नौकरके मुखपर खुर्रेच हो जाती थीं। 'एलीद तिलेइयऊ” नामक छाया-युक्त सडकके आते ही, वुक्षोंक्री छायासें श्रीसतीकी ऑल खुली ओर उन्होने कोमरु स्वरसे कहा-~ ० बेटा, धीरे धीरे चरो; रेसी चारुसे चरूकर क्या मैत बुरूानी है ! 2नीचुओंके संडकाकर पुक्षोसे सर्वेथा ढकी हुईं इस राहके निकट ही, “ माबचे ” नामक नदी सर्पेगगतिसे “ बिछो ? नामक छताओँसे' मंडित कूलोंके मध्य, वह रही थी । রিनदी गर्जन करते हुए सैंवर और चद्ानोंसे टकरानेके कारण क्षुदरदरोके उडते इए जर-कण, इस समय यदरुमेमे, सुद्र गीत्तिकाजोका सा आनन्द्‌ ओर शद्ध चायु शीतरुताका संचार कर रहे थे | इस सुन्दरस्थरुकी आद्धै वायु अस्यन्त प्रसन्नतासे गरे श्वास सीचनेके पश्चात्‌, श्रीमती भेरेमयेलने कुछ एक अस्फुट स्वरसे कटा--“ अव मेरा चिन्त तनिक ভিক্ষা ऊूगा; परंतु उनका स्वभाव आज भी बिगढ रहा था | ”५ श्रीसमतीजी ठीक कहती है, एलेक्जेंडरने उत्तर दिया। ”छत्तीस वर्पासे यह व्यक्ति इस दस्पतिनयुगरुकी सेवा कर रहा था । सवं प्रथम सेनाम अदरक रूपसे सेवा करमेके अनंतर, माकिकौको छोढ्- नेकी चाह न होनेके कारण, सेनासे चिच्छेद होनेपर, यद्‌ इनका सिजी दास हो गया था; और गत छह वि तो अपनी स्वाभिनीको ऊुर्खीपर बैठाकर, यद तीसरे पहर नगरकी तंग गलियों होकर, इसी अकारसे नित्य प्रति ही आया जाया करता था। सुदीधघ सेवा तथा नित्य अ्रति सस्मुख रहनेके कारण,इस सेदमयी वृद्धा स्वामिनी, तथा स्वाभिमक्त सेवकका कु एक गाद्‌ परि- चय भी हो चला था।




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