सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant

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Sumitranandan Pant by नगेन्द्र - Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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জবান ११ है উপ সপ ০৯ এ ৯৮ হলি দিস পাল লি পি লা পট পা২পিসত৮ ০৯ সতত এ পিপি ১: তা লা ত काश में पाश्यात्य गरूबों से निर्मित है। क्रेजल दाध्य-बस्तु के श्ण भे उ्होंने हस পাদ जिज्ञाला और उससे सम्बन्ध रखने वाले मिशन-रिज्ष प्रश्यें दो अप्नाया है। हो, अप्नी विकसित चिल्यनशकति आए विश्वुन दाशनिक आअध्यय्न के दरार उसको पचाने का रुफल प्रयत्म ७ बश्य किया है। श्रीमरी वर्सा ने बीद्ध दशन, एवं वविवर সঞ্জাছুডী व रिरालाजी ते स्मराय ददर तवाद का न न भिया ह| फञ्सः इनके काध्ण मे माब्ुकता ओर दाशनिकता का सुन्दर समगबय हे । कविवर पन््नेमी पौर्वात्य और पाश्वात्य दर्शय के अध्ययन द्वाश कुछ मभजिक सिद्धान्तौं की सिरि शौर उनका सुन्दर कांव्यमय प्रयोग किया है। बहने का तातलय यह है कि हमारे कवियों का रहस्यवाद उनकी धार्मिक आत्मानुभूत्ति का फल्न हो किगी प्रकार हहीं हो सकता । परहस्य ग्रव्नत्ति के कारण उनकी वचि इमम काफी स्यी शौर शप कल्ला एवं चिन्तन शक्ति फ वल पर इन्हे इन रहस्यमंत्र ग्रश्सों पर काव्य का सुनहरा आवरण बड़े सुचारू रूप से चढ़ाया | कुछ कबियों थी कृतियाँ इसका अपवाद भरी दै ससे कथिक भैधिलीशगण की 'मकैकार--उसमें धार्मिकता त देखना कथि के व्यक्ति के प्रति अन्याय होगा । एक बात अवश्य है कि भाक्कार का कवि सक्तिपथ का पश्चिक होने केकारए गहस्यवादी रचनाएँ करने मे बहुत अधिक सफल नहीं ही सका | शक्षा-- कला भावों और विचारों में दी परिवततत हुआ ही, शैक्कों आर कत्ञा में उससे भी शव्रिक क्रान्ति उपस्यित हुइ। अब सके के कवि परागी रीतियस्स शापा से ही सम्तप्ठ भे। यदि कोई मवीतता-विय कि हुआ मो दो-वार झा के शद. उससे मित्षा ॥ গহ £ তি সদ ताफियों ने आंपरेजी आर बंगढा वगे काव्य- এর দ্যা দাদ মং নী খা तः दरक उसकी




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