कला का विवेचन | Kla ka Vivachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनलाल महतो 'वियोगी ' - Mohanlal Mahato'Viyogi'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९५ चूला
लिया जायता भो सम्यताकी आवश्यकतायें क्या कुछ कम
महत्त्वपूर्ण हैँ । चिरविकासशील सम्यताकह्ा पालन न करने
आवश्यकता समकक्तर सनुष्प सदाचारक्ा अभ्यास करता है और
छस्यास-परंपरासे वह उसके शारीरिक तथा सानसिक संगठनक्ा
अविच्छेय जंग चन जाता है 1 रिरि ते जिस प्रकार पंकसे पंकज की
उत्पतति दाठी है. उसी भ्रक्ञार शारोरिक इत्तियेंखे मलुप्यदी उदात्त
इतिय का उन्मेष छोकर कालान्तरमें परमशाभन रूप घारण करती हैं।
विदाने एक तोरा वनं “कलाक्ते लिये क्लाका› सिद्धान्त
उपस्थित करता रै ओर आचारन्ति च्लाक्ते बाहरी वस्तु ठहराग
है, क लाके लिये क्लारे' सिद्धान्तच्च अथं स्पष्ट न हेनेके सारण
षस
५ > श्रा =. श ॐ ~ বিল
इस सम्दन्धमे बहुत-सी সানিব উল্লাহ ই জা दिदेदन्मे ता
বাঁড়া ~ {> বিহ্বল स এক 5
हम সিল भिन्न न्दा वस्तु হজ হক বু বিহ্বল হু অত্র
५ ~~ হা च्रे गै सलग-ड्लग तदना ~
हैँ छथदा दा था अधिक जला-न्ाष्टदाएनं ক্লাস বলা হব
১ दला-उ्यरे रा भिद्र-भिद्ध मनघ्य होते हैं
অক উ उन पला-र धयोंके रूए सिन्न-मि्ष मनुष्य होते है कौर
4 मन॒प्थेके दिकासदी परिस्थितियों শ্রী শিল मित्त हती ह
আন सलुप्शेंके दिक्ासदी पररेस्थितियों भी निक्न मिह् होती हैं।
সন্ত स्दय एफ अश य प्राएी है। बह छपनी परिस्थिति, देश-
दला न्टिर्राहै ठ्य
হন न्रा शट परदा ह् दघ
কা ক পিস व (क <== ~ ~~न শুক
ভুল হাহা ১৯৩ उका वव उचने स्रन्स হুল জলা লিল
= =-= ৯
दाषएा पर ५/न লা परुता ट ৭ হক ইত হন্বক্কা কে কল্ল-
রা ০ ১০৯ 87 লা ০১১০৯ 25 5
न्दम त्न हाट समाज र्दद ~ न्ना नमः कला >स्िएः
न्दः 4 रषयः
৬ এ পুজি সত ০ তি ~ =
শা উজ সরতে त रन वडाः र ऽ = ভাটি অপ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...