महाभारत विरट पर्व | Mahabharat Virat Parv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय २ | धिसयारपव । ७
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इत्येतद्वो मधारूुयात विहरिष्याम्यह यथा।
वृकोदर विराटे त्वं रंस्यसे केन कभेणा ॥ २२॥
॥ एति श्रीमहामास्ते विराखपवैणि प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥ २३ ॥
में जिस प्रकार रहूंगा आपलोगोंसे कह दिया । हे भीम ! अब विराटनगरमें तुम क्या काम
करके निवास करोगे ॥ २३ ॥
॥ महाभारतके घिराटपवेम पहला अध्याय समाप्त ॥ १ ॥ २३ ॥
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भीमसेन उवाच
पौरोगवो च्रवाणोऽदहं बल्लवो नाम नामतः।
उपस्थास्यामि राजानं विराटभिति भे मतिः ॥ १ ॥
भीमसेन बोले- हे भारत ! मेरी समझमें यह आता है कि राजा विराटके यहां जाकर में
कहू, कि में भोजन बनानेका कम करता हूं, मेरा नाम पौरोगव बल्लव है ॥ १ ॥
सूपानस्य कारिष्यामि कुशलो5स्मि महानसे |
कृतपूर्वाणियेरस्थ व्यज्ञनानिखु शिक्षित:
तान्यप्यमिभाविष्यामि प्रीति संजनयन्नहम ॥ २॥
में बहुत अच्छा भोजन बनाना जानता हूं, राजाका भोजन बनाऊंगा, और जो उनके यहां
पहिलेसे शिक्षित लोग भोजन बनानेवाले हैं, उनके द्वारा बनाए गए व्यजने भी अच्छा
भोजन बनाऊंगा ओर में उनको प्रसन्न करूंगा ॥ २॥
आहरिष्यामि दारूणां निचयान्महतोऽपि च ।
तत्पेक््य विपुर कम राजा प्रीतो भविष्यति ॥ ३॥
में बडी बडी लकडियोंके गदरकों सिरपर उठाकर चौंकेमें डाल दूंगा, मेरे इस घोर कमंको
देखकर राजा बहुत प्रसन्न होंगे ॥ ३॥
द्विंपा वा बलिनो राजन्वूष भा वा महाबला। |
विनिग्राद्या यदि मया निग्रहीष्यामि तानपि ॥ ४ ॥
हे राजन् ! यदि बलान् हाथी अथवा बङशाखी सांडोको मुञ्चे पकडना होगा तो उसको मँ
पकड लिया करूंगा॥ ४ ॥
ये च केचिन्नियोत्स्पन्ति समाजेषु नियोधकाः ।
तानहं निहनिष्यामि प्रीति तस्यथ विवर्धेयन ॥ ५ ॥
जो योद्धा समाजमें युद्ध करनेकी इच्छा करेगे, उन्हें भी में राजाके प्रेमको बढाते हुए
मास्मा ॥ ५ ॥
সপ সিল ॥ वि त 00०७
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