ययाति | Yayati
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.86 MB
कुल पष्ठ :
357
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विष्णु सखाराम पाण्डेयकर - Vishnu Sakharam Pandeykar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ययाति स्वय ही ठाव तरह से नहीं जानता क्या मैं अपनी भापवीती सुमा रहा हू । कया इसलिए कि मैं एक राजा हू लक्नि क्या वास्तव मर मैं एक राजा हू ? नहीं मैं एक राजा था राजा रानी की कहानिया लॉग बड़ चाव से सुनत है । उनकी प्रणय बयाआ में आम दुनिया बहा ही रम लिया करती है। जाने मान शायर उन कथाओ पर था रो शायरी और कविताएं भी रच डालत हैं । मेरी कहानी मी एक प्रणय-कथा--नहीं नही पता नहीं वह कस किस्म की कहानी है जानता हू कवि मानस का मोह लेने लायक उसम बुछ भी नहीं है। लकिनि नाज मैं यह कहानी नही सुना रहा ह वह एक राजा वीं कया है। इस वहानी की जड म न ता बिसी तरह का अभिमान है न अहवार और नहीहै किसी वात का प्रदशन । य तो राजन्वस्त्र की धज्जिया हैं वाई नसका प्रतशन भला किसिलिए करगा रे राजयश मे जमा इसलिए मैं राजा बना राजा वी हैसियत स जिया । इसम मेरा न ता कोई युण हैं. न दांप । हस्तिनापुर व॑ महाराजा नहुप वे पुत्र करूप मे परमात्मा ने मुझे जम टिया । पिता के वाट राजगद्दी पर साधा जा बठा इसमे भी कोई बडप्पन है राजप्रासात के शिखर पर जा बठ बीए को भी लोग बडे बुतृहन स दखा करत हैं 1 राजपुत्र न होकर मैं यदि काई क्रपिकुमार हुमा होता तो क्सि तरह का जीवन बन गया हाता मेरा शरत वी नृत्य मस्त चालनी रात-सा या शिशिर की अंधेरी रात सा क्या पत्ता दिसी आथम में पटा हांता ता क्या अधिव सुखी चन जाता ? नहीं इस प्रश्त का उत्तर खाजत खाजर्ते में हार चुका हू । रहू- रहकर एक ही विवार मन मे आता है कि शायत तब सरा जीयन-क्हानी बिल्कुल ही मासूती सी हो गई हाती किसी वरत्वत जसी । विविय रगो के तान-वान स बुन राजवस्त्र वा रुप उस वभी प्राप्त नहीं होता । जा भी हा आज भी रस राज वस्त्र बी सभी छराण मर् मन वो भाती नहीं है । तय भी क्या मैं झाज अपनी जीवन-वहानी सुनात बढठा हू ? कौन-सा वात मुन्ने इसकी प्रेरणा ? रही है? जस्म खोवकर टिखान से मन का दु हलवा हा जी व व बा कि दब कि व
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