गीता प्रबन्ध प्रथम भाग | Essays On The Gita

Book Image : गीता प्रबन्ध प्रथम भाग  - Essays On The Gita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीतासे हमारी आवश्यकता ओर माँग संसारमें कितने ही सदग्रथ हैं वैदिक ओर कोकिक भी, कितने ही आगम-निगम ओर स्छति-पुराण हैं, कितने ही घम ओर दर्शन- शास्त्र हैं, कितने ही मत, पंथ ओर संप्रदाय हैं। इन सबमें अधकचरे ज्ञानी अथवा सवेथा अज्ञानी मनुष्योंक विविध मन ऐसी अनन्य- बुद्धि ओर आवेशशसे अपने-जापको भाब्द्ध किये हुए हैं कि जो कोई जिस ग्रथ या मतको मानता दै उसीको वह सब कुछ जानता है, उसके परे ओर भी कुछ है इसको देख ही नहीं पाता, ओर अपने चित्तमें ऐसा हठ पकड़े रहता है कि बस यही एकमात्र ग्रंथ भगवानूका सनातन वचन है ओर बाकी सब प्रेथ या तो केवल ढोंग हैं या यदि उनमें कीं कोई भगवसत्मेरणा या भाव है तो वह अधूरा है, ओर इसी तरहसे ऐसा हड कि इमारा यह अमुक दशन ही बुद्धिकी पराकाष्टा हे--बाकी सब दर्शन या तो केवल भ्रम हैं अथवा उनमें यदि कहीं कोई आंशिक सत्य है तो वह उतना ही है जितना कि हमरे इस एकमात्र सच्चे दाशनिक सेप्रदायके अनुद्रु है । भौतिक-विज्ञानके आविष्कारोंका भी एक संप्रदाय-सा ही बन गया है और उसके नामपर धरम और अध्यात्मको আহ্বান জীব अंधविश्वास, तथा दर्शनशास्त्रोंकों कूड़ाकरकट और ख्याली




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