हिंदी साहित्य में हास्य रस | Hindi Sahitya Mein Hasya Ras
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
341
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)বাঃ
के कुशल विवेचक और सिद्धान्त प्रतिपादक के रूप में हमारे सामने बाते हैं ।
उन्होंने हास्य रस के सिद्धान्तारणव में अवगाहन करने का प्रयत्न किया है और
उसमे से कुच बहुमूल्य रत्न हमारे सामनं रक्खे हं । भारतीय साहित्यशास्त्र के
ग्रनकल जितने भेद हो सकते थे उनका उल्लेख किया गया है और कहीं कहीं
योरोपीय साहित्य शास्त्र में प्रचलित भेदों से उनका तादात्म्य भी किया गया
है। लेखक रूढ़िवादी नहीं है। उनका मत है कि परिस्थितियों के साथ हास्य के
प्रालम्बन बदलते हैं और लोगों की मनोवत्तियों में भी अन्तर आता है।
उसी के साथ हास्य की परिभाषाएँ भी बदलती हे फिर भी उन्होंने
ग्रसंगति को ही हास्य का मलाधार माना है। बगेसाँ आदि दाशनिकों की
परिभाषाएँ भी असंगति की शब्दावली में घटाई जा सकती ह। लेखक अधिकांश
में योरोपीय पंडितों से प्रभावित है। इसका कारण भी है कि हमारे यहाँ
जितना श्यगार का विवेचन हुआ उतना और रसों का विवेचन नहीं हुझा है ।
प्राचीन लोगों के इस विषय में उदासीन रहने के कारण हो सक्ते हं किन्तु
खेद की वात है कि नवीन आचार्यों ने भी इस विपय में बहुत कम अंशदान
किया है । इस ग्रन्थ का मूल्य यही है कि वह हिन्दी पाठकों का इस सम्बन्ध में
कु नेत्रोन्मीलन कर सकेगा श्रौर इम दिना में ` पाश्चात्य पंडितों के किये
हए प्रयत्न का दिग्दशेन करा सकेगा । पटले प्राचार्यो कौ श्रसमर्थता का एक
कारगा भी था, वह यह कि उनके सामने हास्य सम्बन्धी विभिन्न प्रकार के
लक्ष्य ग्रन्थ उपस्थित न थे। भ्रव ईश्वर की दया से हिन्दी के साहित्य क्षेत्र की
प्रत्येक विद्या में प्रयुक्त हास्य के विभिन्न प्रकारो का, यहां तक कि व्यंग्य-चित्रों
पर भी प्रकाश डाला गया है। लेखक ने पेरोडी आ्रादि हास्य के प्रकारों की
परिभाषा ही देकर सन्तोष नही किया है वरन् उसके भेद उपभेद भी बताकर
विषय को पहले से श्रधिक पल्लवित किया है। सामग्री यहाँ दी गई है वह स्थाली
पुलाक न्याय है। हिन्दी के लक्ष्य ग्रन्थों के आधार पर अंग्रेजी के सिद्धान्त
ग्रन्थों का सहारा लेते हुए हास्य सम्बन्धी लक्षण ग्रन्थों को तैयार करने की
ग्रावश्यकता है। यह ग्रन्थ भी उस दिशा में एक आंशिक प्रयत्न है ।
इस ग्रन्थ के प्रध्ययनसे यह् भ्रान्त धारणा दूर हो जाती है कि हिन्दी
में हास्य व्यंग्य की कमी है। हिन्दी का निबन्ध-साहित्य हास्य की दृष्टि से
पर्याप्त मात्रा में पुष्ट है। उसके विश्लेषणात्मक सर्वेक्षण की ग्रावश्यकता
है। हिन्दी में स्नेह हास्य ( जिसको अंग्रेजी में 1पा10प५7 कहते हैं ) की
भ्रपक्षाकृत कमी है । लेखकों का ध्यान उस श्रोर जाना चाहिए । हिन्दी में दूसरी
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