वल्लभ प्रवचन द्वितीय भाग | Vallabh Pravachan Part 2

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Vallabh Pravachan Part 2 by विजयवल्लभसूरिजी महाराज - Vijayvallabhsuriji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० सं संपादक की कलम से.{8 का... स-व ০০০০ পা युग লই करवट ले रहा है । पुरानी मान्यताएँ अब केवल श्रद्धा- पूर्वक ज्यों की त्यों मानने से लोग कतराते हैं। आज का अधिकांश चुद्धिजीवीवर्ग हर वातों को युक्ति और तक की कसौटी पर कसता ह और उसमे सही उतरने पर ही मानता है । अतः वर्तमान युग में जो धर्मोपदेशक धमं और अध्यात्म की बातों को युग के साथ मेल विठा कर अपने श्रोताओं के सामने नहीं रखेगा, उसके विचारों को दकियानुसी समझ कर अधिकांश लोग नहीं अपनायेंगे । श्रद्धय युरवीर स्व० श्राचायश्री विजयवत्लभसूरिजी महाराज युगद्रष्टा और कर्मठपुरुष थे । उन्होंने पंजाब, राजस्थान और बम्ब की धर्मभूमि में समाज को प्रेरित करके अनेक विद्यालय, उद्योगगृह, जेनमन्दिर एवं महासभा आदि संस्थाएँ स्थापित करवा कर अपनी कर्मठता का परिचय दिया है। वम्बई-चातुर्मोस उनके जीवनकाल का अन्तिम चातुमीस था। सन्‌ १६४२ के वम्बई-चातुर्मास में उन्होंने धर्म और अध्यात्म की गहन व्याख्याओं की युग के साथ संगति चिठा कर विविध लोकोपयौगी विषयौ पर व्यापकटष्टि से गहराई में उतर कर प्रवचन दिये हैं। उन्हीं प्रवचनों को सुन्दर सेली मे सम्पादित करके वल्लभ-प्रवचन ट्वितीय भाग के रूप में पाठकों के समत्त प्रस्तुत किया जा रहा है । स्व ० आचार्यश्रीजी म० के चरणो मे वेठ कर जिन साधघु-्ावको ने उनके वे प्रवचन सुने हैं, उनका कहना है कि “उनके प्रवचनों से इतनी




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