आधुनिक संस्कृत नाटक [भाग 1] | Adhunik Sanskrit Natak [Part 1]

Adhunik Sanskrit Natak [Part 1] by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ आधुनिक-सस्कृत-नाटक सखियों के कहने पर ष्ण ते হানা की चापतूसी की-- अयमत्रनिसर्मशी तलः सखि राचाकरुचयो रवस्पितिमू ! नवकांचनकुम्मयो रहं स्फु रदिन्दीवरदाभवद्‌ भजे ।॥ ३-४१ सब्षियो के सुझाव से राधा की सेवा द्वारा उसे प्रसन्न करने के प्रस्ताव कृष्ण ने रप्ता-- कि चंदनेन कुचयों रचयामि चित्र-- मुत्ततमामि कबरी तव कि प्रसूर्नः! अंगानि लगिमतरांगि करेशा कि वा संवाहयाम्यतनुखेदकरम्वितानि 8 ३.८४ कृष्ण और रावा का ऐकान्तिक संमागम सम्भव, न हो सका, क्योकि तभी मुखरा आ गईं । कप्ण के द्वारा कुदल समाचार पूछने पर मुखरा बोली कि जब तक तुम्हारी बी बजेगी, तव तक हम लोगो को सुख कहाँ ? ज्योही तुम्हारी वशी की ध्वनि सुनती हैं, समी गोकुल-बालिकायें वनाभिमुख दौड पडती हैं । कृष्ण को वह हटाना चाहती है | कृष्ण भी जाने के सिस्त थोडो दूर हटकर वुक्ष के बीच छिप जाते हैं। वे थोडी देश में राधा के निकट आकर उसका पटाजञज्चल खीचते दहै! रात्रि का समय होने से रतौधी से ग्रस्तं बुढ़िया कुछ-कुछ देखती है कि कया हो रहा है। उसे रूलिता ने समझ्ना दिया-- मुधा शज्भूमत्घे जरति कुरुपें यामुनतटे प्मालौऽ्यं चामीकरकलित-मूलो निवसति ) समो रम्रेवोचादत्तिचटूल ~ याखासुजनया वयस्याया येन स्तनवसनमास्फालितममूत्‌ ॥३.४५ জুতা का पिर घूम रहा धा । वह चलती वनी । कृष्ण ने फिर तो यथावसर राघा को अपने गले का गुज्जाहार पहनामा । राधा के बनावटी क्रोध को समाप्त करते के लिए ललिता ते उससे कहा-« हरये समप्य तनु कृपणासि कथ्थं दरावलोके। दत्ते चिन्तारत्ने व सम्पुटे आग्रहों युक्तः ॥रे.३८ नलिता ओर विशा क्यारी सीचने के मित चरती वनी । राधा ओौर्‌ कृष्ण चन्दिका-पन्दिति चन्धशाला मे जा विराजे। चतुर्थ जद्धुके আহমল ক अनुसार एक दिन ङप्ा सन्घ्या के ध्मय ग्रोव्ेत की ओर चले गये । वहाँ वश्ी दजाई । चद्धावल्ी नामक उनकी एक ग्रेयसी बहाँ निकट ही रहती थी | उससे हो मिलने कृष्ण वहाँ गये थे ! रगमझूच पर एक ओर चन्धाविली और उसकी सखी पद्मा तथा दूसरी और कृष्ण और उनके सहायक सुबल हैं । चन्द्रा- चली ने कृष्ण की वच्मी से ईर्ष्या प्रकट की--




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