निमंत्रण | Nimantran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निमंत्रण १३
इसी वर्ष उसका जो कच्चा सकान देहात सें किसी तरह कुछ खड़ा सी रह
गया था, वह भी गिरकर पट पढ़ गया। फिर फाटक के भीतर लॉन को
पार करते और पोर्टिको तक पहुँचते-पहुँचते बोल उठे--'कितने दिनों बाद
सिलना हो रहा है | क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि कभी-कभी आफ़िस
में आकर ही मिलती হাঁ 1 कहते-कहते एक वार फिर सोचने लगे---
उस मकान में रेणु व्याह में केवल दस-पाँच दिन ही तो रह पायी थी ।
बरामदा आ गया है। अमिया ( एक नौकरानी ) अन्दर से निकलती
हुई बोल उठी--आप कहाँ थीं? माँ जी आपको पूछ रही थीं ।
मालती अनिच्छापूर्वक वोली--“'यहाँ सड़क पर तो घूम रही थी”
और, शर्म्माजी को ऊपर सीढ़ी की ओर ले जाने लगी । विक्टर की जंज़ीर
उसने असिया को दे दी ।
आगे-आगे शम्मीजी चले, पीछे-पीछे मालती ।
सीढ़ी पर चढ़ती हुई मालती ने उत्तर दिया--हो क्यों नहीं सकता
था “यह हो सकने की वात आपने खूब कही | ( फिर ऊपर के कमरे
में पहुंचकर ) लेकिन मैंने अभी कहा न था आपसे, आपने कभी मेरे यहाँ
आने की कृपा नहीं की |
शर्म्माजी मुसकराने लगे । फिर कमरे की सजावट देखते हुए वोले---
हूँ; तो यह वात है !
इसी समय अमिया थआ गयी | आते ही उसने पंखा खोल दिया ।
मालती चोली--दो गिलास शरबत बनाकर ले आना ।
'अमिया चली गयी । किन्तु तत्काल ही अतीत हुआ, कुछ लोग
सम्भवतः और आ रहे हैं। नीचे से उनका वोल सुनाई दे रहा था । इसी
च्ण उललसित मालती बोली-आपको किसो अत्यन्त आवश्यक कार्य से
कहीं जाना तो नहीं है ? मेरा मतलब केवल यह जानने से है कि आध घंटा
तक तो आप ठहरंगे ही ।
जान पड़ता है, शम्माजी उसकी ग्रीवा पर उड़ती हुई एक लट की ओर
देख रहे थे। घोले---अब तो उलम ही गया हैँ ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...