राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम उ० प्र० 1973 सम्बन्धी न्यायिक निर्णयों का विवेचन और विश्लेषण | RAJYA VISHWAVIDYALAY ADHINIYAM U.P. 1973 SAMBANDHI NYAAYIK NIRNIYON KA VIVECHAN OR VISHLESHAN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| वह समझते है कि गलत को सही करवाने में सामान्य व्यक्ति को वतमान कानूनी ढांचे में एडी चोटी का पसीना एक करना होगा, सफलता फिर भी संदिग्ध होगी | इस लक्ष्य से वह भलीभांति परिचित है कि विवाद को न्यायालयों के चक्कर में डालकर पैरवी की सहायता से अधिक समय नष्ट किया जा सकता है | शिक्षक छात्र, अभिभावक और साधारण कर्मचारी निराश होकर यहो धैर्य खो बैठता है | प्रबन्ध समितियां भी आपस में दल बनाकर टकराती रहती हैं और मान्यता के लिये अनगिनत विवाद शिक्षा विभाग के अधिकारियों एवम्‌ न्यायालयों की मेजों पर सुरसा के मह की तरह बढ़ते जा रहे है । प्राय: शिक्षक कानूनी दांवपेंच से दूर रहता है | कानून की यह अवस्था भारतीय जनजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त है, परन्तु इस व्यवस्था से शिक्षा का क्षेत्र अधिक प्रभावित होता है, कारण यह है कि शिक्षा एक प्रकार से जीवन है जो कानून या शब्दों का विश्लेषण करने से नही चलता । यहाँ आस्था, अहिंसा, आदर और आंकलन जैसे तत्वों का आधार लेना पड़ता है | एक जगह कवियत्री महादेवी वर्मा ने कहा है कि “जीवन तो अलिखित विधान से चलता है, और सरकार लिखित विधान से | कभी शैक्षिक दृष्टि से लिया गया कठोर आचरण न्याय की भाषा में अवैध हो सकता है किन्तु उसे करना ही पड़ता है | कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षा की विशिष्टता को कानून की भी विशिष्टता उपलब्ध होनी चाहिऐ । शिक्षा को प्रेरक बनाने हेतु दक्ष शिक्षा व्यवस्था होना अनिवार्य है | उ.प्र. में विश्वविद्यालयों की स्थापना तथा समय-समय पर गवर्नमन्ट ऑफ इंडिया अधिनियमों तथा राज्य विश्वविद्यालय अधिनियमों में शिक्षकों की नियुक्ति तथा सेवा शर्तों के विशद प्रावधान है किन्तु विधि सिद्धान्त तथा प्रशासन के सिद्धान्तो मे कभी-कभी परिरिथिति जन्य टकराव उत्पन्न हो जाता है । जो शिक्षा के क्षेत्र में एक त्रासदी है | आज बात-बात में न्यायालयों में चुनौतियों दी जाने लगी हैं | विगत दो दशकों में विश्वविद्यालय रपर पर्‌ प्राध्यापक की नियुक्ति की संख्या में आशातीत वृद्धि हुई है, क्योंकि कानून को ढाल बनाकर उसकी छाया में চা कक कक ल | ¢ कभ




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