अछूत भक्त | Achoot Bhakt
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रघुनाथप्रसाद वर्मा - raghunathprasad verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
सकता हूँ। पर एक शर्ते पर, मुझे एक छुँआ खुदवाना है ! यदि
तू अपने हाथों से कँआ खोद दे तो में तेरी मांग पूरी कर
सकता हूँ ! |
छवा के लिए तो यह एक साधारण बात थी। वह तो अपने
प्राणों को गवां करके भी साधुओं को भोजन कराता चाहता था ।
फिर उसे महाजन की यह शतं मान (लेने में आपत्ति ही क्या
होती ? उसने महाजन की बात मान ली । महाजन ने उसके
कथनानुसार दो सो आदसमियों के भोजन का पूरा समान उसके
घर भेज दिया । कूचा ने आनेंदपूवेक सामान साधुओं के हवाले
कर दिया। साधु मंडली उसे आशीर्बाद देती हुईं चली गई।
करवा का हृदय भी आनंद से पुलकित हो उठा | वह अपनी
इस सफलता पर इतना आह्ादित हुआ, सानो उसे संसार की
संपत्ति मिल गई हो ।
दूसरे दिन, सबेरा हुआ और कूबा अपनी स्त्री सहित शर्ते
के मुताबिक महाजन का छुँआ खोदने में लग गया। कूबा छुँआ
खोदता, ओर उसकी स्त्री सिद्टी निकाल कर बादर प्तंका करती ।
साथ ही दोनो की जवान पर भगवान का ना; रहता । दोनो गहरा
परिश्रम करने पर भी बहुत सुखी रहते--बहुत असन्न रहते । उन्हें
न परिश्रम जान पड़ता ओर न थकावट | भगवान् के नाम की
मधुर वीणा हमेंशा दोनों के अन्तर तल में जीवन का संचार करती
रहती थी । ठेसा मालूम होता था, मानों दोनो खी-घुरुष संसार
की सीमा से बहुत आगे निकल गये हैं। उन्हें संसार के दुख-सुख
User Reviews
No Reviews | Add Yours...