अछूत भक्त | Achoot Bhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) सकता हूँ। पर एक शर्ते पर, मुझे एक छुँआ खुदवाना है ! यदि तू अपने हाथों से कँआ खोद दे तो में तेरी मांग पूरी कर सकता हूँ ! | छवा के लिए तो यह एक साधारण बात थी। वह तो अपने प्राणों को गवां करके भी साधुओं को भोजन कराता चाहता था । फिर उसे महाजन की यह शतं मान (लेने में आपत्ति ही क्या होती ? उसने महाजन की बात मान ली । महाजन ने उसके कथनानुसार दो सो आदसमियों के भोजन का पूरा समान उसके घर भेज दिया । कूचा ने आनेंदपूवेक सामान साधुओं के हवाले कर दिया। साधु मंडली उसे आशीर्बाद देती हुईं चली गई। करवा का हृदय भी आनंद से पुलकित हो उठा | वह अपनी इस सफलता पर इतना आह्ादित हुआ, सानो उसे संसार की संपत्ति मिल गई हो । दूसरे दिन, सबेरा हुआ और कूबा अपनी स्त्री सहित शर्ते के मुताबिक महाजन का छुँआ खोदने में लग गया। कूबा छुँआ खोदता, ओर उसकी स्त्री सिद्टी निकाल कर बादर प्तंका करती । साथ ही दोनो की जवान पर भगवान का ना; रहता । दोनो गहरा परिश्रम करने पर भी बहुत सुखी रहते--बहुत असन्न रहते । उन्हें न परिश्रम जान पड़ता ओर न थकावट | भगवान्‌ के नाम की मधुर वीणा हमेंशा दोनों के अन्तर तल में जीवन का संचार करती रहती थी । ठेसा मालूम होता था, मानों दोनो खी-घुरुष संसार की सीमा से बहुत आगे निकल गये हैं। उन्हें संसार के दुख-सुख




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