माटी की गन्ध | Matee Ki Gandh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टूट गया पिजरा
फूलपत सहेलियो के साथ हँसी ठिठोला करती गगा के किनारे बालू के
घरौंदे बताने मे जुटी थी। माई पुकार - पुकार कर अधा गई थी, पर फुलपत के
काना पर जू ही नही रेंगी थी । कमी दुर्गा माता का चौतरा बनाती, उसम गेंदे का
फूल खोसती, बनाते - बनाते खिसिया जाती और ठोक नही बनता तो गया के
किनारे पानी मे पैर डालकर सब कौ सब पत्थर पर बैठ जाती । उस पार से आते
वाली नावो को देखती और एक दूसरे पर पानी उछालती । सभा घिरती आ रही
थी। मलदहिया और मदरवा से आने वाले अहीर शहर मे दिनभर दूघ बेचने के बाद
साईकिली पर खाली टकी लिये घर लोट रदे ये, मल्ताह् विरहा गने मे मस्तये।
घोबी पछाड - पछाड कर मुंह से आवाज निकालते हुये कपडो फो पत्थरो पर
पदक - पठक कर धोने में लग थे । जब पीपे के पुल पर से कोई मोटर गुजरती तो
सारा पूल धड - घड की आवाज से गुज उठता, फुलपत और उसकी सहेलिया
अचरज से इन सबको देखती और उनका जी भी घक ~ धक करने लगता ।
फूलपत घाद पर महान का बहाना लेकर आई थी, सका घिरती देख माई
का जी बचेन हो उठा था, पर गगा दशहरा के त्यौहार को तैयारी भी तो उसे ही
बरनी थी, गुडिया बनाना, उसे सजाना, गगा मे सिलाना सबका मार उसी के
ऊपर ही था, पर भाई इन सब बातो को क्या जान उसे तो फूलपत का सारा काज
ही अकारथ लगता है। दिया बाती जल चुकने के बाद जब फुलपत घर लौठी तो
माई ने उसे कस कर लताडा और पीठ पर घप से एक घोल जमा दिया था, पर
यादू ने उसे अपनी गोद मे लुका लिया था और माई को बरजते हुये बोल पडे ঈ-
जाय देव फुलपत की माई, काहे फो विटिपा पर खिसियात हो, अब
हो तो खाये खेले का दिन हो, फिर तो बेटी की जात का पता केकरे घर जाई,
सुख मिल्ली वी दु ख इतो माग की बात है”--
“और इस तरह बाबू ने फुलपत को भाई की मार से बचा लिया था बसे
पाई वा भी उस पर कम नेह नहीं था, चोरी छिपे माई खाने की चीजें कमी
खटिया के पामे में क्षोसती, कमी छप्पर म और कमी हँडिया मे लुकाती और फिर
फुल्पत के घर लोटन पर उसे सामने बिठाकर खिलाने मे ही माई का जी जुडाता
या!
दट पमा पिज ] { 3
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