बाल साहित्य | Bal Sahitya
लेखक :
क्षितीश राय - Kshitish Ray,
युगजीत नवलपुरी - Yugajeet Navalpuri,
रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore,
लीला मजुमदार - Lila Majumdar
युगजीत नवलपुरी - Yugajeet Navalpuri,
रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore,
लीला मजुमदार - Lila Majumdar
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
106 MB
कुल पष्ठ :
287
श्रेणी :
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क्षितीश राय - Kshitish Ray
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युगजीत नवलपुरी - Yugajeet Navalpuri
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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
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लीला मजुमदार - Lila Majumdar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वेतन लेते । खान-पान और पहनावे निहायत सादे थे। सभी नंगे
पवि रहते । पर श्रानन्द की मांत्रा प्रचुर थी। गुरु-्शिष्य-सम्बन्ध
प्यार-भरे थे, मानस के विकास के लिए अनन्त अवकाश था ।
.. विद्या किताबी पढ़ाई तक ही सीमित नहीं थी । बाग्बानी,
दरीर-साघन, खेल-कूद, समाज-सेवा, प्रकृति का प्रध्ययन श्रौर उसके
সালন্হী का उपभोग आदि भी पढ़ाई में ही शामिल थे ।
विद्यालय के जीवन में संघर्ष की कठोरता होने पर भी
ग्रानन्द-ही-श्रानन्द था । रुपये-पैसे का श्रभाव वना ही रहता था।
कवि तो अपना सर्वेस्व दे ही डालते थे, दूसरे बन्धु-बान्धव भी कुछ-
न-कुछ जुटाते रहते थे। जसे-तेसे काम चल जाता था ।
आश्रम बने साल-भर भी नहीं हुआ था कि मृणारिनी देवी
का देहान्त हो गया । माँ के बिछोह से मर्माहत सनन््तानों को कवि ने
गले बाँध लिया और पिता होने के साथ-साथ अ्रब माँ भी वह आप ही
हो गए । तभी उन्होंने बच्चों के लिए इतनी सुन्दर कविताएँ लिखीं।
१६०३ से १६०७ तक बड़े दुःख के दिन थे । दूसरी लड़की
रेणुका, पूज्य पिताजी और सबसे छोटा लड़का शमी, तीनों एक-एक
करके चल बसे और कवि को गहरा शोक दे गए । पर पारिवारिक
शोक से उन्होंने न तो जी छोटा किया और न ही मन में कोई कड़वा-
ইন आने दी । इन वर्षों में भी, एक-से-एक लाजवाब पुस्तकें लिखीं ।
कवि पारिवारिक कत्तंव्य तो पालते रहे, पर परिवार में
बंधे नहीं रहे। देश-प्रेम उन्हें परिवार से बाहर भी ले गया । स्वदेशी-
आन्दोलन में वे पूरी तरह रम गए और उसके पुरोहित बन गए]
राष्ट्रीय आजादी के आन्दोलन, बंग-भंग-विरोधी-आन्दोलन और
राष्ट्रीय शिक्षा के आ्रान्दोलन में उन्होंने नेता का काम सँमाला ।
. देश को बड़प्पन देने वाले हर काम में उनके उत्साह का
कोई ठिकाना न रहता था । लेकिन दलगत राजनीति की उखाड़-
पछाड़ को वे सह नहीं पाते थे । किसी भी तरह के कठमुल्लेपन या
सामाजिके संकीर्णता को वे पास तक फटकने नहीं देते थे । इसीलिए
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