बाल साहित्य | Bal Sahitya

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क्षितीश राय - Kshitish Ray

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युगजीत नवलपुरी - Yugajeet Navalpuri

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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लीला मजुमदार - Lila Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेतन लेते । खान-पान और पहनावे निहायत सादे थे। सभी नंगे पवि रहते । पर श्रानन्द की मांत्रा प्रचुर थी। गुरु-्शिष्य-सम्बन्ध प्यार-भरे थे, मानस के विकास के लिए अनन्त अवकाश था । .. विद्या किताबी पढ़ाई तक ही सीमित नहीं थी । बाग्बानी, दरीर-साघन, खेल-कूद, समाज-सेवा, प्रकृति का प्रध्ययन श्रौर उसके সালন্হী का उपभोग आदि भी पढ़ाई में ही शामिल थे । विद्यालय के जीवन में संघर्ष की कठोरता होने पर भी ग्रानन्द-ही-श्रानन्द था । रुपये-पैसे का श्रभाव वना ही रहता था। कवि तो अपना सर्वेस्व दे ही डालते थे, दूसरे बन्धु-बान्धव भी कुछ- न-कुछ जुटाते रहते थे। जसे-तेसे काम चल जाता था । आश्रम बने साल-भर भी नहीं हुआ था कि मृणारिनी देवी का देहान्त हो गया । माँ के बिछोह से मर्माहत सनन्‍्तानों को कवि ने गले बाँध लिया और पिता होने के साथ-साथ अ्रब माँ भी वह आप ही हो गए । तभी उन्होंने बच्चों के लिए इतनी सुन्दर कविताएँ लिखीं। १६०३ से १६०७ तक बड़े दुःख के दिन थे । दूसरी लड़की रेणुका, पूज्य पिताजी और सबसे छोटा लड़का शमी, तीनों एक-एक करके चल बसे और कवि को गहरा शोक दे गए । पर पारिवारिक शोक से उन्होंने न तो जी छोटा किया और न ही मन में कोई कड़वा- ইন आने दी । इन वर्षों में भी, एक-से-एक लाजवाब पुस्तकें लिखीं । कवि पारिवारिक कत्तंव्य तो पालते रहे, पर परिवार में बंधे नहीं रहे। देश-प्रेम उन्हें परिवार से बाहर भी ले गया । स्वदेशी- आन्दोलन में वे पूरी तरह रम गए और उसके पुरोहित बन गए] राष्ट्रीय आजादी के आन्दोलन, बंग-भंग-विरोधी-आन्दोलन और राष्ट्रीय शिक्षा के आ्रान्दोलन में उन्होंने नेता का काम सँमाला । . देश को बड़प्पन देने वाले हर काम में उनके उत्साह का कोई ठिकाना न रहता था । लेकिन दलगत राजनीति की उखाड़- पछाड़ को वे सह नहीं पाते थे । किसी भी तरह के कठमुल्लेपन या सामाजिके संकीर्णता को वे पास तक फटकने नहीं देते थे । इसीलिए ६




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