चाबुक | Chabuk

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Chabuk by श्री राम कृष्ण त्रिपाठी निराला - Shree Ram Krishn Tripathi Nirala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह छोटा सा-लेख इस उद्देश्य से नहीं लिखा जा रहा कि तराजू के एक पलडे पर बिहारी श्रौर दूसरे पर रवीन्द्रनाथ को वैठाकर दोनों कवियों की कवि-प्रतिमा तौली जाय । बिहारी महाकवि है इसमे कोई सन्देह नहीं परन्तु रवीन्द्रनाथ केवल भारत के नहीं संसार के महाकवि है । बिहारी के काव्य-विवेक में उतनी नवीनता नहीं जितनी रवीन्द्रनाथ की कविता मे है । विहारी ने किसी नये छन्द का आविष्कार नहीं किया कोई ऐसा अचूठा भाव नहीं दिखलाया जिसे अपनाने के लिए संसार भर के मनुष्यों को लालच हो । रवीन्द्र- नाथ मे ऐसे एक नहीं अनेक छन्द हैं-श्रनेक माव हैं । बिहारी के काव्य-चेत्र से रवीन्द्रनाथ का काव्य छ्षेत्र बहुत प्रशस्त है--बहुत विस्तृत हे । बिहारी की प्रतिभा हिन्दी ही के हाव-भावों को सुग्ध करती है रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा संसार भर के भाव-सौन्दय को चमत्कृत करती है । दोनों मे बड़ा श्रन्तर्‌ है | सम्भव है यदि बिहारी रवीन्द्र- नाथ के समय के कवि होते तो उनके काव्यों मे भी विश्व-भाव के




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