भारतीय राजनीति और हेमवती नन्दन बहुगुणा | Bharatiye Rajneeti Aur Hemvati Nandan Bahuguna
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जगन्न म हः इनं मम्धाओं का अखिल भारतीय स्तर पर साथ लाने के चर्चे और प्रयास होने लगे थ।'
[8४2 मे एक गष्टीय सम्मेलन करा सुझाव देते हुए यह स्पएण किया गया कि লিল एक राष्ट्रीय आर कम में
कम प्रान्तीय काग्रेस क्यों न स्गाॉठत करे और देश के विभिन्न भागा से आये हुए और विभिन्न सार्वजनिक
লালা मे भेज हुए प्रतिनिधिया की एक आम सभा কলা न करे? अनन्त 1883 के 28 दिसम्बर से 30
डमम्बर तक पहला राष्ट्रीय सम्मलन कलकत्ता में हुआ। इसमे जिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार हुआ, वे थे--
प्रतिनिधि परिषद साधारण तथा तकनीकी शिक्षा, न्याय में प्रशामनन का अनगाव, फौजदारी न्याय की व्यवस्था
ओर सरकारी संवाओं में भारतीयों की अधिक नियुक्ति। ब्लन्ट के शब्दों मे यह राष्ट्रीय समठ की स्थापना
का प्रधम सापान था ^।
28 दिमम्बर.1885 को वम्बई मे दिन के 12 बज गोकुलदास तेजपाल सस्कृत कालेज के भवन मे
দান क पहला अधिवेशन हुआ। प्राग्म्भ से ही काग्रेम का स्वसूप राष्ट्रीय था यह किसी वर्ग विशेष किसी
जात धरम सम्प्रदाय आदि की प्रतिनिधि सम्था मात्र नहीं थी, वरनू इसकी सदस्यता अंग्रेज, हिन्दू, मुसलमान.
फारसी आदि सभी वर्ग के व्यक्तियों ने ग्रहण की जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों के रहने वाले तथा भाग्तीय
सामाजिक जीवन के सार्वजनिक सुमान्य नेता थे। इनमे किसी का भी उद्देश्य मात्र ब्रिटिश साम्राज्यवाद की
रक्षा करक अपन निजी स्वार्थों की पूर्ति करना नहीं था। एलेन आक्टेवियन हयूम, वेडरवर्न, फिगजशाह
महता दादा भाई नौगजी, मुर नाथ वनर्जी, वदम्ददीन तैयवजी, उमेश चन्द्र वनर्जी आदि किसी भी
आगम्भिक नता को किमी वर्गं विशेष या माप्राज्यवाद का प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता?। काग्रेस का
उद्देश्य जाति, धर्म या वर्ण के किसी भठभाव के विना समस्त भारतवासियों का प्रतिनिधित्व करना धा।
काग्रम का राष्ट्रीय स्वरूप इसी से स्पष्ट हो जाता है कि इसके प्रथम अध्यक्ष वोमेश चन्द्र बनर्जी भारतीय इसाई
थ, दूसरे दादा भाई नौरोजी पारसी थ, तृतीय बदरुद्दीन तैयवजी मुसलमान थे, चतुर्थ एवं पंचम अध्यक्ष जार्ज
यूल ओग सर विलियम वडग्वर्न अग्रेन थ ५|
काग्रम के प्रथम अधिवेशन में केवल 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस दौरान इस वात की आशा
नटी का जाती धी कि भारतीय ग्य काग्रेस देश की सवसे वड़ी राजनैतिक संस्था का रूप ग्रहण कर लेगी
आर कालान्तर मे ब्रिटिश शासन का स्थान ग्रहण कर लेगी। शुरू में कांग्रेस ने अपने आपको एक पार्टी के
म्प म नही वल्कि एक आन्दोलन! के रूप में लिया। प्रारंभिक दौर क काग्रेसी नेता नरमपंथी थे ये ब्रिटिश
सुमित सरकार . आधुनिक भारत (1885-1947) नई दिल्ली, 1992 (पुर्नमुद्रण-1995) पृष्ठ संख्या- 112 |
डा० ताराचन्द्र भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास, वही, पृष्ठ संख्या- 478 |
इा० नाराचन्द्र : वही |
9 डा० वी० पट्टाभि सीता गमयां : संक्षिप्त कांग्रेस का इतिहास नई ठिल््ली, 1958, पृष्ठ संख्या-18-19 |
10) डा० पी० आर० जैन : नेशनल मूबमेट आफ इण्डिया एण्ड इण्डियन कांस्टीट्यूशन, पृष्ठ संख्या-21 ।
1] बिपिन चन्द्र भारत का स्वत्त्रता संघर्ष, नई दिल्ली (हिन्दी माध्यम कार्यन्विय निदेशालय)1990, पृष्ठ संख्या- 50।
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