गौमूत्र महौषधि | Gaumutra Mahaushadhi

Gaumutra Mahaushadhi by जयबहादुर सिंह शेखावत - Jaibahadur Singh Shekhavatभँवरलाल कोठारी - Bhanvarlal Kothari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[17] भेदन करने वाला, पित्तवर्धक, थोडा मधुर, मलो का सरण कराने वाला, लेखन (चिपके हुए मल रुप दोषो को उखाड़ कर बाहर निकालने वाला) कफ, वायु, कुष्ठ रोग, गुल्म, उदररोग, पाण्डु, श्वित्र (सफेद कोट), शूल, अर्श, कण्ड्‌ खुजली, दमा, आम, भ्रम, ज्वर, आनाह, खोसी, कब्ज, सूजन, नेत्र रोग, मुखरोग, त्वचा रोग, प्रदरादि स््रीरोग, अतिसार तथा मूत्रावरोध (मूत्र का रुक जाना) इन सबका शमन करता है। आचार्य श्री गापालालभाई वैद्य भारत के विख्यात वनस्पतिशास्त्री थे । उन्होने अपने 'द्रव्यगुणशास््र' मे गौमूत्र के वारे मे लिखा है कि यह थोड़ा मधुर, दोषघ्न, कृमिघ्न ओर कण्डुहर है । उदर रोग मे उत्तम है । मूत्र प्रयोग मे साध्य विकारो मे गौमूत्र लेना चाहिए। फारसी ग्रथ, ( अजायवुल्मखलुकात^“ मे अनेक असाध्य रोगो की गौमूत्र चिकित्सा का वर्णन है। गौमूत्र रोगों पर किस प्रकार से सफल होता है ? यह वर्णन करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि रोग क्यो होते है । जिससे उसको समझना आसान हो सकेगा। प्रश्न : रोग क्यो होते हैं ? उत्तर: निम्न कारण है .- 1 विभिन्न जीवाणुओं के किसी प्रकार से शरीर मे विभिन्न अगो पर आक्रमण करने के कारण | 2 शरीर की रोग विरोधिनी शक्ति की कमी के कारण। 3. दोषो (त्रिदोष) के विषम हो जाने के कारण। 4 आरोग्य दायक तत्वो (र्जीसि) की किसी प्रकार की कमी के कारण । 5 कुछ खनिज तत्वो की कमी के कारण। 6. मानसिक विषाद के कारण । 7. किसी भी ओपधि के अति प्रयोग के कारण। 8 विद्युत तरगो की कमी के कारण। 9 वृद्धापकाल मे उपरोक्त किन्ही कारणो के कारण। 10 आहार मे पौष्टिक तत्व की कमी के कारण । 11 आत्मा की आवाज के विरुद्ध काम करने के कारण। 12 पूर्वजन्मो के पापो के कारण । (जिन्हे कर्मज व्याधिर्यो कहते हं) 13 भूतो के शरीर मे प्रवेश से भूताभिष्यग रोग हो जाते हं 1 14 माता पिता के वश परम्परा के रोग होते है। 15 विषो के द्वारा रोग होते है। सस्निना




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