राजस्थानी कवि [खंड 2] | Rajsthani Kavi [Vol. 2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्तावना ६ द्वारा विपुक्ष साहित्य रचा गया' इस समूचे साहित्य का मूल स्वर सासतीय संतमत की सामान्य चिन्ताधारा पर आधारित दे) सुख्य परिष ईश्वर, जीब, माया, जोवन की सश्वस्ता, अभेद का वात्विक लोक- आह्य निरुपण, घर्म और जाति के नामों की व्यथेता, देठयोग, साधु जीवल, शुरु महिमा, सबद मदिमा, मृ्तियुजा-विरोध, पतित-प्रेम ओंकार जाप, डदबोघन आदि ही हैं। धन साधारण पर श्या भो इन मतो হর শুন মলা টু | জী জ্বী দহ হলি में लगने वाले कई मेले अब तक चले आ रहे हैं। इन मेलों में दूर दूर से इजारों साधू ओर उपा- सके आते हैं । मद्वाराजा सानमिंह, लोधपुर के कवि व धार्मिक मरेश में वो नाथें की अपना गुरु मान लिया था। दाद्पंथियों को अग्रपुर सन्यसे शाध्रय मिन्ा था। इस प्रकार राष्याभ्य और जनाथय पाकर विभिन्‍म संतमत यों फूले, फ । इसीलिए सन्तसाहित्य का जितना अच्छा संप्रद राजस्थान में हैं, उतना शायद हो अन्यत्ञ दो । इस समूचे साहित्य पर जो कु भी कहा सायेण, तथ्यों और गवेपणा के व्रभाव में बह अपूय ही रदहगा और ऐसी स्थिति में यहां राजस्थानी सत सादित्य पर विशेष ने कहकर सरुथरेखा देना ही समीचान दीया । चैसा कि अपर बताया सा चुआ है, जोधपुर नरेश मानसिदद ने जाया को अपना गुरु माना धा। महाराजा स्वयं कवि थे और उन्दने खर्घ नाथमत दे सिद्धीं पर स्वनायें जिद्ी हे । यदी नदा उनके आश्रित कवियों में से अधिकांरा ने महाराजा की कृपाकांज्षा-देतु साथों ঘ মিতা के विषय में रचनायें रची । सिद्धों व नाथ सम्प्रदाय विषयक ऐसी यदुत महत्व की सामग्री जोबपुर नरेश के हस्तलिखित प्रथालय 'बुस्तक प्रकाश! में है। साथ में मिद्धाल-पविपयक चित्रमालाएं भी हैं। इस स्व सामप्री का महत्व अमंदिम्ध दे




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