शैली की दृष्टि से इंद्र सूक्तों का अध्ययन | Shaili Ki Dristi Se Indra Suktoo Ka Adhyayan

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Shaili Ki Dristi Se Indra Suktoo Ka Adhyayan by हेमलता पाण्डे - HEMLATA PANDEY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वैदिक भाषा की प्राचीनता याद कही सखष्ट दर्शनीय है, तौ वह श्रग्वेद ही है | उसके परवर्ती ट्रान्थों' में वादक एवं लौककिक भाषा का अन्तर स्पष्ट ल्‍प से देखा जा । * शैली से तात्पर्य षमारा ऋग्वेद एवं अन्य लौकिक परवर्ती ग्रन्थौ! की व्याण्या' पढ़ात से है । वैदिक भाषा, का कीई प्रामाण्य वैदिक व्याकरणं उपल ब्ध नदी होता । पाश्चात्य विद्वानोन दी वेद का सर्वप्रथम कराह पवं विस्तृत अध्ययन के पश्चात्‌ कुछ उान्‍्य प्रकाशित करवाय, जिनके आधार पर यह अध्ययन प्रजया काफी पष्प पव प्लवत दर्द ॥ वेद व्याख्या पद़ाँत को दो भागों में बॉँटा जा कता हे । (1 भारतीय वेद व्यास्या' पद्ाीत | ॥2| पाशचा त्य | विंदेशी। रैली । 11६ भारतीय वेद की व्याण्या की पढ़ीत तो काफी कुछ हद तक प्रशसनीय है, किन्तु कुछ दुरूहताएं अब भी बनो द्द हैं | प्राचीन से लेकर नवीन शोध शास्त्री लदिक शब्दो' के रहस्य की परत का भेदन करने में लौ हैं | शशि, कल्प, व्याकरण, निरूकत, ज्योतिषं पं म्यम का अध्ययन * वैदिक जान कोष का अभिनव ज्ञान प्राप्त करते भरं सहायक है । शिशिक्ष न्यो के माध्यम से मन्त्रो' एवं श्रुवाओ' का एक पक्ष दी जानाजध्कता है, कल्प मन्त्रौ से यज्ञ परक कर्मकाण्डः का ज्ञान प्राप्त किया जा करता है। किन्तु व्याकरण का अध्ययन करके वादिक भाषा की तद्द तक ছক না এ আলা ই । करई लिखित प्रामाण्य व्याकरण ग्रान्य अप्राप्य होने से 'निरूकत के निनर्वचनं का ही सहया रा लेना पड़ता है 1




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