त्रिलोचन कविराज | Trilochan Kaviraj

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Trilochan Kaviraj by ब्रजमोहन वर्मा - Brajmohan Vermaस्व. रवीन्द्रनाथ मैत्र - Sw. Ravendranath Maitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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या भी १६ स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ मंत्र आदमीसे अपनी जान-पहचान और आत्मीयता श्रकट करनेकी मजुष्यकी कसज़ोरीका मज़ेदार चित्रण एक आधुनिक गत्प में मिलता है ।. यौवनके आरम्भमें आदसी कितना अन्धा हो जाता है इसका कौतुक-भरा वर्णन अन्तिम प्रष्ठा नामक गल्पमें किया गया है । अपने विरचित पात्रोंके साथ रवीन्द्रनाथकी बढ़ी गहरी सहानुभूति है । पात्रॉंको रचना करते समय वे अपने-आपको पात्रोंके व्यक्तित्वमें मिला देते थे। कईबार देखा गया था कि मसित्रोॉंकों अपनी कहानी सुनाते समय पात्र-पात्रियोंकी व्यथासे वे स्वयं ही रो पढ़े पात्रोंके साथ उनकी यह एकता हो उनके पात्रोंके व्यक्तित्वमें जान डाल देती है। संसारके साहित्यमें बहुधा हम देखते हैं कि हास्य-रचनाओंके पात्र प्रायः इतने अधिक काव्पनिक हो जाते हैं कि वे वास्तविकतासे बहुत दूर जा पढ़ते हूँ। रवीन्द्रनाथकी इन हास्य-रचनाओंके पात्र इस दोषसे सवधा सुक्त न भी हाँ फिर भी वे अत्यधिक जीते-जागते दीख पढ़ते हैं । कहीं-कहींपर तो वे इतने सजीव हैं कि हमींमें से निकले हुए जान पढ़ते हैं । यद्दी रवीन्द्रन।थकी कलाका और सफलताका अमाण है । १९९३ 1 -श्रजमोदन वर्मा ४ छः




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