हिंदी उपन्यासों में दाम्पत्य जीवन | Hindi Upnashaya May Dampataya Jeevan
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38.37 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अलका दुबे - Akla Dube
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डॉ आशा गुप्ता - Dr. Aasha Gupta
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)याज्ञल्क्य स्मृत्ति मैं प्रथभ चार्+विवाह उत्तम स्वीकार किस गए हैं शौर वाह विवाह सर्वश्रेष्ठ माना गया है । क्याँकि रैसे विवाह से उत्पन्न पुत्र हव्कीस पीड़ियाँ कौ पवित्र करता है | उपर्युक्त उद्धरण सै स्पष्ट हौता है कि विवाहिति-जीवन मैं भौग काम की स्वीकार करतै हर मी मारतीयु मनीष काम की प्रबलता की स्वीकार नहीँ करता । काम का लक्ष्य पुन-प्राप्प्त है और पुत्र मौच- प्राप्त का साधन है । नितान्त लौकिक सम्बन्धी मैं मौज्ञ की भावना का समावैश करकै विवाह कौ धार्मिकता से बांध दिया है | दच्ष स्मत्ति मैं लिखा है प्रथपा धर्मपत्सी स््रधाि धर्म-पत्नी धार्मिक विधि सै धर्मवुद्धि कै लिये हौती है । क्याँकि कौटिल्य कै अनुसार विवाह पूर्वॉव्यवहाए रे साँसा - एरिक व्यवहार विवाह हाँने पर ही प्रारम्भ हीते हैं इसलिस संसार मैं धर्म की प्रमुख्ता स्थापित करते कै लिस पति-पत्नी कै सम्बन्धी कौ सस्कत कै श्राचार्य धार्मिक भावना सै बाघ दैतै हैं | उपयुक्त शास्त्रकारों नै विवाह कै समय वर्-कन्या कै रूप गुण शील तथा स्वास्थय पर विशैष बल दिया है । प्राचीन साहित्य मैं विवाह कै प्रकार विवाह की विधियां कूल- गौत्र सम्भमौग श्रादि समस्यात्रीं पर विस्ता रपूर्वक विचार किया गया है । विवाह कै सामाजिक तथा सम्मौणिक शारीरिक स्तर पर पनक्न का शास्वकार विस्तार सै वर्णन करते हैं किन्तु उसकै श्राध्यातत्मिक तथा भावनात्मक पन्न कौ स्वीकार करते हुर मी गौए स्थान वैतै हैं । शारीरिक सम्मौग पक्त का हतना विस्तार झन ग्रन्थों मैं है कि सक बार | रैसा प्रतीत हीौता है जैसे स्त्री श्र पुरूष कै जीवन का लक्ष्य मात्र कामवाचि की ताप्ति है | पति-पत्नी कै कर्चव्य श्रौर अधिकाय की मीमाँसा मी प्राप्त हौती है । जिससे विवाह स्क समफीता मात्र ही लगता है । पुरुष की परवार-वृद्धि और कामतृपिप्तु का आ्राधार मिलता है श्र स्त्री कौ भरण -पौषणा तथा सुरक्षा के लिस शक्तिशाली पुरुष की प्राप्ति होती है.। मनु नै कहा है कि स्वी की रघ्ना करता हुआ मनुष्य १ याज्ञल्वय याशवल्क्य स्मुत्ति विवाह -म्रकरण ८ ३ रछे २ दक्ष स्पृत्ति चतुर्थ श्वध्याय श्लौक संस्था १४ ३ कौ टिल्य-ब्रथशा स्त्र- तृतीय अधिकरण द्वितीय अध्याथ प्रथम श्लौक
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