पहुडदोहा | Pahudadoha

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Pahudadoha by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहस्यवाद १७ पाहुडदोहा में रहस्यवाद इस ग्रंथ के कर्ता एक योगी थे और योगियों को ही सम्बो- धन कर के उन्होने प्रंथरचना की है । यद्यपि उनका सामान्योपदेश सीधा ओर सरल है किन्त ग्रंथ के स्थल स्थल पर रहस्यवाद की छाप भी ठगी हुई है | कर्ता के लिये देह एक देवाठ्य है. जिप्तमें अनेक शक्तियों सहित एक देव अधिप्ठित है। उस देव का आराधन करना, उसे पहचानना, उतम तन्मय होना, एक वदी मूढ क्रिया है जिसके च्यि गुरु के उपदेश और निरन्तर अभ्यास का आवश्यकता है | ग्रंथकार का गूढवाद समझने के छिये मैं पाठकों का ध्यान निम्न दोहों पर विशेष रूप से आकर्षित करता ह-दोहा ने, १,९ १४, ४६, ५३, ५५) ५६, ९४) ९९, १००४ १२१, १२२ १२४; १२७, १३७, ३२४४, . १५७, १६७, १६८, १७०, १७७, १८९, १८४; १८६, १८८, १९२) २०३, २१३; २१९; २२०, २२१. ईन হাহা जोगि्यो का आगम, अचित्‌ जीर चित्‌, देहंदेवली, शिव और शक्ति संकल्प ओर विकल्प, सगुण जर निंयुण, अक्षर, वेध और विबोध, वाम, दक्षिण और मध्य, दो पथ, रवि, शाशे, पंचन और काठ आदि र्ते शब्द है, ओर उनका से गहन ख्य मे प्रयोग इभा हे, रि उनसे हमै योग चौर तांत्रिक ग्रंथों का. स्मरण आये विना नही रहता | यथार्थतः बिना इन प्रयो की सकितिक माषा कं जव- टम्बन के उपर्युक्त दोहों के पूरे रहस्य-का उद्घाठन नही होता- ক




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