विकास की ओर | Vikas Ki Or

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Vikas Ki Or by शान्त प्रकाश - Shant Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२---प्रमाद छोडिये ! सत्युरषों पुरधाय ररन्ए हमारा प्रथम फसव्य द। जा पुरपाय नहीं बरत्ता-पुर्पा्धी नहो सनता यहा पुर वालन योग्य नहीं दे । पुरुपफो पुस्पायसे रोकप पाली बा चौत है? प्रमाद। भगवान्‌ महायीरन अपने प्रियतम शिष्य गौगमका प्रमादर्स ग्रषनेफा थार यार उपदेश टिया दे । महा दे ~ “पम्रयं गोयम ' मा पमायए्‌॥ স্ক্যান ह गौतम । दूं क्षय मर का मी प्रया स ফয। महात्मा चुद्धन तो प्रमादकोौ मृत्युपा कारण बतलात हुए হা ছু “पमरष मर्युने। पद्म्‌ ॥ प्रभातफरीम कसी द्विदी कवि की ये पक्तिया गाई जानी हैं. -- द्र तग मस्ापिर ! भौर अड अप रा बहाँ जो साफत ६। ज्ञा भागत है सा पावत दं আ साथ टह मा बरोषत 2):




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