रासिकानंद | Rasikanand
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
99
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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रुसिकानन्द। १५
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। सुख बिडसन लदुश्रा रो, बरवत तन मन सुधि बुधि हारो, घ॑
घरवारो लुलुफ कतल कारो ॥ स्याम ॥ ५७॥
तिताला ।
कवलं नेनन जल बरसये, हिय तरसख्य, हो ॥ कबलों सोच
समुद्र थहैये, नेनन हू भरि लखन न पेये, ओसन प्यास बुकये,
मन समुर्कय, डो ॥ जीधि ललकि गरवां न लगे, तोपि कहा
जोवन फल पये, नाईक जिय न जरेये, बरु विष खेये, हो ॥
रङ्पाल श्रव यदो दिखेये स्यामिं ले नकछ न सकेये, सिगरो
| काक्षक सिटेये, कच्च कढ़ि जय, हो ॥ कबवलों० ॥ ५४८ ॥
স্লবাী स्याम सुरति बिसराये, सधुबन छाये हो ॥ कछ्डि कह
»' | बतियां अरूत सानो, बरजि रहों जे सखो सयानो, तिन को
एक न सानो, सो फल पाये, हो ॥ कारे तन को कोन परखो,
| काक पालि मधुपालिन पेखो, अपनो चुक विरुखो, नई ज्षगाय
हो ॥ रंगपाल द्वे मये पराये, सुधा दिखाय गरल अचवाये, ओरहइ
जरत जराये, जोग पठाए, हो ॥ हमरो ॥ ४८ ॥
जान दे लेंगरवा, डगरवा न रोक मोरि, इतनो बिनति
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নাল ভু ॥ जान द° ॥ रङ्गपाल या गोकुलवारो, रजगिरि करि
गई में वारो, न भुलोंगो यह पहिचान, लाज दान दे ॥ जान० ॥
कांड दे छेलवा, पयलवा, बाजेगो, जागति है ननदिया ॥
च्डट॥ र॑ंगप्रालल मानले विनति यद, घकधकातमोर हिया॥
छाड द छलवा० ॥ ६० ॥
अब तुस जाब जहां निसि जागे बासल, तो सों नहिं वो
लोंगो ॥ पायन परति इहमेंन सताओ, उनकों को गरवां लप-
टाओ, रह्षपान घूँघट पट नच्चि खोशोंगो ॥ अब तुम० ॥ ६१ ॥
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