रासिकानंद | Rasikanand

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Rasikanand by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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দিক সপ रुसिकानन्द। १५ নস न । सुख बिडसन लदुश्रा रो, बरवत तन मन सुधि बुधि हारो, घ॑ घरवारो लुलुफ कतल कारो ॥ स्याम ॥ ५७॥ तिताला । कवलं नेनन जल बरसये, हिय तरसख्य, हो ॥ कबलों सोच समुद्र थहैये, नेनन हू भरि लखन न पेये, ओसन प्यास बुकये, मन समुर्कय, डो ॥ जीधि ललकि गरवां न लगे, तोपि कहा जोवन फल पये, नाईक जिय न जरेये, बरु विष खेये, हो ॥ रङ्पाल श्रव यदो दिखेये स्यामिं ले नकछ न सकेये, सिगरो | काक्षक सिटेये, कच्च कढ़ि जय, हो ॥ कबवलों० ॥ ५४८ ॥ স্লবাী स्याम सुरति बिसराये, सधुबन छाये हो ॥ कछ्डि कह »' | बतियां अरूत सानो, बरजि रहों जे सखो सयानो, तिन को एक न सानो, सो फल पाये, हो ॥ कारे तन को कोन परखो, | काक पालि मधुपालिन पेखो, अपनो चुक विरुखो, नई ज्षगाय हो ॥ रंगपाल द्वे मये पराये, सुधा दिखाय गरल अचवाये, ओरहइ जरत जराये, जोग पठाए, हो ॥ हमरो ॥ ४८ ॥ जान दे लेंगरवा, डगरवा न रोक मोरि, इतनो बिनति ও | এ ৬ নাল ভু ॥ जान द° ॥ रङ्गपाल या गोकुलवारो, रजगिरि करि गई में वारो, न भुलोंगो यह पहिचान, लाज दान दे ॥ जान० ॥ कांड दे छेलवा, पयलवा, बाजेगो, जागति है ननदिया ॥ च्डट॥ र॑ंगप्रालल मानले विनति यद, घकधकातमोर हिया॥ छाड द छलवा० ॥ ६० ॥ अब तुस जाब जहां निसि जागे बासल, तो सों नहिं वो लोंगो ॥ पायन परति इहमेंन सताओ, उनकों को गरवां लप- टाओ, रह्षपान घूँघट पट नच्चि खोशोंगो ॥ अब तुम० ॥ ६१ ॥




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