तपोधन विनोबा | Tapudhan Vinoba

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Tapudhan Vinoba by जीतमल लूणिया - Jitamal Looniya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ तपोधन चिनोबा रामनाम जपता है, ईश्वर पर विश्वात्त रखता है, वह निर्भय हो जाता हैं।” विनोवा को इन शब्दों से ऐसा लगता माना शक्ति का खजाना :'खुलगया हो | इसी बल पर वे स्मशान जाकर वहाँ कील ठोक आने की शर्तें लगाते | राशि के समय मार्ग में साँप बिच्छू भी हो सकते थे, लेकिन विनोबा को उनका भय ही नहीं लगता था। जिस भूत से दूसरे लड़के डरते रहते वह उन्हें कभी दिखाई नहीं दिया। उनका विश्वास दृढ़ हो गया “कि रामनाम में बड़ी से वड़ी कठिनाई को भी हल करने की शक्ति है। विनोवा के मन में माँ के लिग्रे बड़ा झ्रादर था। अपने नटखटपन » से वे माँ को बिलकुल परेशान नहीं करते थे। जब अखबार पढ़ने लगते तो माँ को केसरी' पढ़कर सुनाते थे । 'केसरी' उस समय महाराष्ट्र में बड़ा लोकप्रिय पत्र था। कभी-कभी वे माँ को कुछ पढ़ना भी सिखाते थे | पवनार में एक प्रार्थना-प्रवचन में विनोबाजी ने कहा था--“मेरी माँ भक्तिमार्ग प्रदीप पढ़ रही थी, उसे पढ़ना कम श्राता था। वह एक एक श्रक्षर टो टो कर पढ़ रही थी। एक दिन एक भजन के पढ़ने में उसने १५ मिनिट खर्च किये। में ऊपर वंठा था । नीचे प्राया और उसे बह भजन सिखा दिया। उसके वाद में रोज उसे कुछ देर तक बताता रहता श्रौर उसकी पुस्तक पूरी करादी 1 . माँ के मन में गीता को समभने की भी बड़ी तीव्र इच्छा थी ।' लेकिन उस समय विनोवा को संस्कृत नही भ्राती थी । वे माँ के लिए भराठी समश्ोकी गीता ले श्राये लेकिन इतने से उनका सनन्‍्तोप नहीं हुआ । उन्होंने माँ से कंहा कि में ही किसी दिन सुबोध मराठी में गीता की _ रचना कर डालूंगा | माँ के जीवन-काल में तो यह आश्वासन पूरा नहीं हुआ लेकिन सन्‌ १९३२ में उन्होंने उसे माँ की पवित्र स्मृति समझ कर यूरा किया और सरल मराठी भाषा में उसका अनुवाद कर दिया। उसका नाम रखा गया-गीताई' । इस नाम में माँ की स्मृति स्पष्ट है । हम यह भी कह सकते हैं कि यह नाम रखते समय विनोवा के लिए मानो माँ और गीता एक ही होगई थीं। अपनी “विचार पोथी' में




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