श्रीमद्भगवद्गीता | Srimadbhagawadgeeta

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Book Image : श्रीमद्भगवद्गीता  - Srimadbhagawadgeeta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ ] श्रीमद्भगवद्वीत प्र० अण पान्‌ व्यवस्थितान्‌ यद्धाय कृतव्यवस्थान्‌ सज्जीभृतान्‌ हृष्ठा श्रस्राणा सम्पातः शुखसम्पातस्तस्मिन्‌ शरस्रसम्पातं शच्वपंणे पतते रवतितुम्‌वुक्तं सति धनुः स्वगाण्डीवधनुसचम्य समुतोल्यः आह ॥ २० || इस के वाद भी कौरवों को युद्ध क्ले लिये प्रस्तुत और হা घखलाने का समय आया देख कर कपिध्वज्ञ अर्जुन ने अपना धनुप डठा लिया ॥ २०॥ हृणीकेश तदा वौक्यमिद्माहमहीपते । अज्जुन ड्वाच ॥ सेनयोरुषयोमेध्ये स्थं स्थायय सेऽच्धुत ॥२९॥ हे मद़ीपते ध्रतराषट । हृषीकेशं श्रीकृप्णमिदं चच्यमाणं वाक्यमाह निवेदितवान्‌ । हे ऋच्युत श्री कृष्य ! उभयोद्रेयोः सेनयोपध्यऽन्त राले मे मम रथं स्यन्धनंस्थापय ।२९॥ आर हे राजन ! थ्री कृष्ण से कहा-हे अच्युत ! मेरा रथ হীলী सेनाओं के बोच खड़ा करो॥ २६ ॥ ০১ অলইলালিহী পি योहुकामानवंरियतान ।




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