श्री योगवाशिष्ठ-भाषा | Shri Yogvashishtha-Bhasha
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52 MB
कुल पष्ठ :
665
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| मोगवाशिष्ट-माषा ® १३
न 29 न 9 2 9 9 9 99 98 0 0994009
| स्नान दान ओर जप तप करते हुये एक वर्ष में यात्रा समाप्त करे फिर
| अपने नगर को लौट आये । नगर वासियों ने वडा उत्सव किया ।
राजा दशरथ सहित समस्त राज़महल में आनन्द छा गया
श्री योगवाशिष्ठ-बराग्य प्रकरण का दूसरा सगे समाप्त ॥ २ ॥
¶ ১.
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विश्वामित्रागमन वणन ৃ
उस समय राजकुमार रामजी की अवस्था सोलह वष में कुछ ही |
| कम थी । इससे वे नित्य प्रति महाराज दशरथ की आज्ञा प्राप्त करके |
॥ भाइयों सहित आखेट ( शिकार ) खेलने जाया करते थे और बनमें |
| सुन्दर २ परविघ्र मृगो को मारकर राजा को लाकर दिखाते थे । कीं |
| गेंद खेलते तो कहीं भाइयों और मित्रों के साथ स्नान और सन्ध्या |
4 बन्दनादिक क्रियाओं को करते हये नगर वासियों को सव॑दा दी प्रस |
॥ रखते थे । परन्तु ज्योंदी सोलह वर्ष पूरे हुये कि एक दिन सहसा उनका |
| चित्त संसार की समस्त लीलाओं से उपराम हो गया और उच्होंने ६
खाना-प्रीना, खेलना कूदना, देना-लेना ओरं यहां तक कि सोना-उठना |
ओर किसी से बोलना मी त्याग करं एकं अन्धेरीं कोटरी में अपना /
१ आवास बना लिया । कोई कितना ही कहता, वे उधर बिल्कुल ही |;
॥ ध्यान न देते थे और देखने से ऐसा मालूम होता था कि मानों किसी |
| गहरी चिन्ता में पड़े हुये हैं। चिन्ता मनुध्य के शरीर को भक्तण |
कर, जाती है-इस नियम से रामजी दिन दिन दुबले होते गये । शरीर |
सूख कर लकड़ी हो गया मुख पीला पड़ गया । परन्तु जहां उनके ॥
शरीर में इतनी निबंलता आ गई थी वहां यह अवश्य हुआ कि इच्छा |
| रहित होने से उनका मन, निर्मल होगया। जंब देखो चिजुक |
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৩ ` ` ।
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