मर्यादा शिष्योत्तम | Maryada Shishyottam

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Maryada Shishyottam by उपाध्याय श्री भरतसागर-Upadhyaay Shree Bharatsaagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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% अपनी बात #% प्रशान्तमूर्ति, गुरु चरणो के भ्रमर, मर्यादा शिष्योत्तम आचार्य श्री १०८ भरतसागरजी महाराज के श्रीचरणों मे सिद्ध-श्रुत- आचार्यभक्ति पुरस्सर नमोस्तु -नमोस्तु-नमोस्तु। प्राचीन युग मे गुरुभक्ति मे समर्पित एकलव्य का नाम जैसे प्रसिद्ध ই वैसे वर्तमानयुगीन शिष्यो मे आचार्यश्री भरतसागरजी का नाम गुरुभक्ति मे अमर रहेगा। तीर्थकरो मे पारश्वनाथ भगवान का नाम उपसर्गविजयी व क्षमाभूषण के रूप में अमर है, वैसे ही इस युग के इतिहास मे प.पू. आचार्यश्री भरतसागरजी को युगों-युगों तक उपसर्गविजेता, क्षमामूर्ति के रूप में स्मरण किया जाएगा। आचार्यश्री के गाम्भीर्य, मन्द मुस्कान, धैर्य, साहस, वाणीमाधुर्य, गुरु के प्रति समर्पण भाव आदि महागुणो ने जहाँ उनको प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचाया, वहीं असाता वेदनीय कर्म की तीक्रता ने उन्हें असमय में मृत्यु का ग्रास बना गुरुभक्तों को वियोगाग्नि में दग्ध कर दिया। वर्तमान काल में सत्ताईस वर्षों तक निरन्तर बना रहने वाला गुरु-शिष्य का यह एक अनुपम सुखद संयोग था। मात्र ५८ वर्ष की अल्पायु में ४० वर्ष जिनके संयम साधना में बीत गए ऐसी महान्‌ आत्मा निश्चय ही आसन्न भव्यता को प्राप्त हो यथाशीघ्र मुक्तिरमा का वरण करे, यही भावना है। परमपूज्य आचार्यश्री मेरे जीवन के मार्गदर्शक थे, आलम्बन थे, प्रेरक गुरु थे। मैने जो कुक किया या पाया उसमे गुरुदेव आचार्यश्री विमलसागरजी महाराज के आशीर्वाद के बाद आपश्री की सतत कृपा ओर पग-पग पर प्रेरणा ही एक मात्र प्रेरक सूत्र था। आज दोनो उदारचरित गुरुओ के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन बिना जीवन में रिक्तता ही दृष्टिगत होती है।




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