शांति - सोपान | Shanti Saopan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; ६४ शात्ति-सोपान £ भी उसे ही उपयुक्त समका भ्ौर एक दिन समाज ने समाचार-पत्नों में आश्रम के स्थान-परिवर्तन के समाचार पढ़े । आश्रम हस्तिनापुर से उठकर जयपुर चक्षा गया। किन्तु व्यावर के रानीवालो की तरह वहाँ उसे काई आअमिमायक मिल न सका | ज्र० जी कुछ दिन तक अन्य सामाजिक कार्यों में ब्यम् रह कर बीमार पढ गये | आश्रम ने ज्यो-ध्यो करके कुछ वर्ष बिताये ओर श्र० जी का देहावसान होने के बाठ उसे जयघुर भी छोडना पडा | अब बह चौरासी (मथुरा) मे श्रपना कालयापन कर रहा है | मथुरा महाविद्यालय ओर आश्रम का पुनरुद्धार करने के बाद न° जी की दृष्टि अपने पुराने कार्यक्षेत्र बनारस की ओर आकर्षित हुई और सन्‌ १६२० के चेन्रमास में मेंने अपने साथियों के साथ १० उमरावसिह जी को ब्र० ज्ञानानन्द जी के नवीन सस्करण के रूप से पहली बार देखा। काशी सस्क्ृत-विद्या का पुरातन वेन्द्र हे । दिन्दू-विश्वविद्यालय की स्थापना द्वो जाने से सर्वागीण शिक्षा का सेन्द्र बन गया हैं। न यहां विद्वानों की कमी ह नौर न पुस्तकालय करि, जननेन शौर ज्ञानप्रचार कै प्रे भियो कै लिय हमसे उत्तम स्थान भारतत्रष से नही है। जा হালা- नन्दी जीव एकं बार उसके वातावरण का श्रनुभव कर क्तेता हे, उसका, गुजर-बसर, फिर अन्यत्र नहीं हो पाती । समाज कं प्राय समस्त शिक्षालयों के वातावरण का श्रनुभव करने के बाद्‌ भी ्र० जो अपने पूवेस्थान बनारस को न भूल सके और कटे शद्रा-स्स्कान्नो के कखन श भार स्वीकार करने पर भो उन्होने परित्यक्न बनारस को द्वी अपना कार्यक्षेत्र जनाना। उन दिनो मध्यप्रदेश के रतौना गाँव मे सरकार एक कसाई खाना खोलने का विचार कर रही थी, वहाँ प्रतिदिन कई दजार पशुओ के कत्ल करने का प्रबन्ध होने जा रहा था । इस बृचढ़खाने को लेकर अख़बारी दुनिया में खूब आन्दोलन द्वो रद्या था | स्थान-स्थान पर॒ सरकारी मन्तम्य के विरोध में सभा करके वायसरायके पास तार भेजे जाते थे। रक्षायन्धन के दिन स्थाहाद-विधाक्षय में भी सभा इरे । बूचदुखाने के विरोध सें




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