वेदकाल-निर्णय | Vedkal-Nirnaya

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Vedkal-Nirnaya by पं रामचन्द्र शर्म्मा - Pt. Ramchandra Sharmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) | रेखायें (1.010१०७ कहलाती हैं। मूमध्य रेखा पर स्थित সই £ िरक्ष देश कहलाते हैं । मूमब्यरेखा से धुत्र त देरान्वर रेखायें $ -९० धंशों मे विभक्त मानी ग हैं । आजकज्ञ प्रीन्त्रिच स्थान पर से गुजरती हुई देशान्तर रेखा ( दक्षिणोत्तर वायास्योत्तर रेखा ) : से पूर्व को या पश्चिम को देशान्तर गणना फी जाती है। प्राचीन काल में उच्जैन स्थान पर से शुजरती. हुई देशान्तर रेवा गणना के लिए स्थिर की हुई थी। उज्जैनस्य देशान्तर रेखा भूमध्य रेखा छो जिस बिन्दु पर .काटती है. उस बिन्दु को ब्योतिः शासतरः में लंका नाम दिया है । लंझा स्थान फा अक्षांश और देशान्तर शून्य माना जाता था.। लंका से १८० अंश पूर्व की ओर और १८० श्रं पश्चिम की ओर इस प्रकार ३६० तुल्य भार्गो मे मध्य रेखा विभक्त की जाती थी । उन्मैनस्थ याम्योचर रेखाः लंका स्थान से ९० अंशों में उत्तर की ओर और ९० आऑंशों में , दक्षिण की ओर विभक्त-की जाती थी । आमकल यह उपर्युक्त विभाग उस्मैन के स्थान में भ्ोन्विच को मानकर किया जाता ह भूमध्य रेखा निष्ठ धरातल मे दै उसी धरावल मे पृथ्वी सूये के णिव नहीं घूमती, यदि उसी घरात्ञ में पृथ्वो सूर्य के गिदे, घुसे तो दिन और रात सदा तुल्य रहें और पृथ्वी पर ऋतुओं का परित्र्तत भी त हौ। ऋतुओं के क्रमिक परिवर्तन से प्रकंट है कि पृथ्वी सूर्य के गंदे भी घूसतों है और उस घराल मै सीः नहीं घमती जिषे मूध्य रेषा ह प्रणयी जि घरातज्ञ में सू् के गिंद धुमती दै उख धतरल को भूऊत्षाबच.( 700४1७४० ) कहते हैं । किलो स्थिर तारे का उदय और अधि स्थान पूर्व तथा पश्चिम में स्थिर रहता है । क्षिविज.पर सूय के . उदय और अस्त का




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