मत्स्यपुराणान्क | Matasyapuranank
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
407
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय १३३ ]
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* अिपुर-विध्व॑सार्थ शिवजीके विचित्र रथका নিনীঘ ঈ
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ঘর तक्षकश्न कनतरटकधनंजयो । नागा वभूडुरेषैते हयानां वारचन्धनाः ॥ ३३ ॥
ओड्कारप्रभवास्ता वा मन्वयकषकरतुक्रियाः । उपद्रवाः परतीक्रासः पशुबन्धेश्यस्तथा ॥ ३४॥
यक्षोपवाहान्येत्तानि तसिर्खोकस्थे शभे । मणिसुक्ताभवाैस्तु भूषितानि सहस्राः ॥ २५ ॥
प्रतोदोङ्कार पवासीत्तदमं च चषटकृतम् । सिनीवाली कुह राका तथा चायुमतिः श्भा ॥ ३६॥
“ योक्नाण्यासंस्तुरद्ाणामपसपंणचिग्रहाः ॥ २७ ॥
कृप्णान्यथ च पीतानि दवेतमाश्चिष्ठकानि च } अवदाताः पताकास्तु बभूवुः पवनेरिताः ॥ ३८ ॥
ऋतुभिश्च कतः षडभिर्धनुः संवत्सरोऽभवत् । अजस ज्याभवच्ापि साभ्विका धञुषो खडा ॥ ३९॥
कालो षि भगवान् शद्रस्तं च संवत्सरं विदुः । तस्मादुमा काररानिर्धनुषो ज्याजराभवत् ॥ ४० ॥
सगर्म्॑रिपुरं येन दग्धवान् ख ॒चिखोचनः। स दपुर्विष्णुसोमाग्निनिदेवतमयोऽभवत् ॥ ४१ ॥
आननं हाग्निरभवच्छल्यं सोमस्तमोयुदः । तेजसः समवायोऽथ चरेषोस्तेजो रथाङ्गश्टक् ॥ ४२॥
तसिश्च , वीर्यनरद्धश्॑वासुक्रिनीगपा्थिवः । तेजः संवसनारथं वें सुमोचातिविषो विषम् ॥ ওই |
गङ्गा, सिन्धु, रातु, चन्द्रभागा, इरावती; वित्ता
विपाशा, यमुना, ॥ण्डकी, सरखती, देविका तथा सरयू---
इन सभी श्रेष्ठ नद्दियोंको उस रथमें वेशुस्थानपर नियुक्त
किया गया। धृतराष्ट्रके वंशर्मे उत्पन्न होनेवाले जो नाग
थे, वे बाँधनेके लिये रस्सी बने हुए थे। जो वासुकि और
रैबतके वंझमें उत्पन्न होनेवाले नाग थे, वे सभी दर्पसे
पूर्ण और शीत्रगामी होनेके कारण नाना प्रकारके
सुन्दर मुखबाले बाण बनकर धनुपके तरकसोंमें अवस्थित
हुए। सबसे उम्र स्वभाववाली सुरसा, देवजनी, सरमा, कद्रु
बिनता, शुचि, तृषा, बुमुज्ञा तथा सत्रका शमन करनेवाली
मृत्यु, ब्रह्महत्या, गोहत्या, बालहत्या और प्रजाभय--ये
सभी उस समय गदा ओर शक्तिका रूप धारण कर
उस देवरथमें उपस्थित हुईं | कृतयुगका जूआ बनाया
गया । चातुहदोत्र यज्ञके प्रयोजक छीलासह्ित चारों वर्ण
स्वर्णमय कुण्डल हुए | उस युग-सदशा जूएको रयके
सीष॑स्थानपर रखा गया ओर् उसे वव्वान् धृतराष्ट्र
नागद्वारा कसकर बाँध दिया गया। ऋग्वेद, सामवेद,
यजुर्वेद, अथवेवेंद---ये चारों वेद चार थोड़े हुए।
अन्नदान आद्रि जितने प्रमुख दान हैं, वे सभी उन
धोड़ोंके हजारों प्रकारके आभूषण बने | पद्मद्दय, तक्षक,
कर्कोटक, धनंजय-- ये नाग उन धोडोकरे बाल बोँधनेके
व्यि रस्सी इए । ओंकारसे उत्पन्न होनेवाली मन्त्र,
यज्ञ और क्रतुरूप क्रिया, उपद्रव, उनकी
रान्तिके ভি प्रायधित्त, प्डुबन्ध জাহি কিনা,
यज्ञोपवीत आदि संस्कार--ये सभी उस सुन्दर
लोकरथम शोमा-बरद्विके ভি मणि) भुक्ता ओर भूरोके
रूपमें उपस्थित हुए | ओंकारका चाबुक बना और
গহনা उसका अप्रभाग हुआ | छिनीवाली ( चतुदंशीय
अमा ), तुद ( अमवास्यकी अधिष्ठात्री देवी ) राका
( शुद्ध पूर्णिमा तिथि ) तथा स्यभदायिनी अनुमति
( प्रतिपदयुक्ता पूर्णिमा )--ये सभी थोड़ोंकों रथमें
जोतनेके लिये रस्सियाँ ओर बागडोर बनीं । उसमें काले
पीले, खेत और खाट रगकी निर्मठ पताकाएँ छगी थीं,
जो वायुके वेगसे फहरा रही थीं | छहो ऋतुओसहित
सवत्सा धनुष बनाया गया । अम्बिकादेबी उस
धनुपकी कभी जीर्णं न होनेवाटी सुद् সস্তা উই |
भगवान् रुद्र॒ काक्खरूप हैँ । उन्हीको संवत्सर कहा
जाता है, इसी कारण अम्बिकादेवी काठरात्रिरूपसे उस
धलुपकी कभी न कटनेवाटी प्रत्यन्चा वनीं । त्रिलोचन भगवान्
शंकर जिस बाणसे अन्तर्भागसहित त्रिपुरो जल निवाले
थे, वह श्रेष्ठ बाण विष्णु, सोम, अग्नि---इन तीनों
देवताओंके संयुक्त तेजसे निर्मित हुआ था| उस बाणका
मुख अग्नि ओर् फाठ अन्धकारविनाशक चन्द्रमा ये |
चक्रधारी विष्णुका तेज समूचे बाणमें व्याप्त था | इस
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