श्रीमद्भगवतीसूत्रम् (पञ्चमाङ्गम्) [भाग 2] | Shrimad Bhagvati Sutram (Panchamangam) [Part 2]

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Shrimad Bhagvati Sutram (Panchamangam) [Part 2] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २९७] चलमाणें चलिए 'पमैलेगा ? कारण कार्य में व्याभिचार नहीं दोना चाहिए । दोनों एक हो जावें। इस वात की शिक्षा देने वाला शाद्र कदलाता है । यहाँ कहा गया है कि शान, दशन और चारित्र साधन ॐ ॐ, के ৬৬ ই और मोच्त साध्य हे । इन साधनों के द्वारा मोक्ष को साधा जाय तो कोई गड़बड़ न होगी । हमारे आत्मा की शक्कियाँ बन्धन में हैं। उन शक्िियों पर आवरण पड़ा है। ठस आवरण को हटाकर आत्मा की शक्कियों को प्रकट कर लेना ही मोक्ष है। आत्मा में सम्यग्ज्ञान, सम्यग्द्शन और सम्यकू-चारित्र की शक्ति स्वभावतः विद्य- मान है, लेकिन वद्द दव रही है । रत्नन्रय की इस शक्ति में आत्मा की अ्रन्य' सब शक्तियों का समावेश हो जाता है ज्यो-ज्यों स शक्ति का विकास द्वोता है, मोत्त समीप से समीपतर होता चला जाता है। तात्पर्य यद्द है कि जो ज्ञान, दशन और चारित्र की आराधना करेगा वह मोक्त की आराधना फरेगा और जो मोक्ष की आराधना करेगा वद्द इन साधनों-को अपनावेगा। : जैसे खीर को दूध, चावल श्रोर शक्कर कटो या दृध, चावल, शक्कर को खीर फो; एक ही वात दहै 1 इसी प्रकार सम्यक््‌- शान-दशेन-चारित्र की आराधना कहो या भोक्ष की आराधना कह्दो, दोनों एक दी वात है। सम्यक्‌ शान-द्र्शन-चोरित्र मोक्ष के ही साधन है । यह साधन मोक्ष को ही सिद्ध करेंगे, और किसी कार्य को सिद्ध नहीं करेंगे। मोक्ष को साधने वाला इन तीनों कारणों को खांधेगा और इन्हीं कारणों से मोक्ष सघेगा ।




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