मलिक मुहम्मद जायसी | Mulik Muhammad Jayasi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मल्निक मुहभ्मद जायसी
धरती पारि, छात भहरानी ।
पुनि मह सथा भौ सि दिरानी ॥१
३--सूरुज (अल) सेवक ताकर श्रै ।
श्रारौ पहर पिरत जो रक ॥
सो अस बपुरे गहने लीन्हा ।
গী মাং बॉाँधि चंडाले दीन्हा ॥
गा अलोप होह, सा अधियारा ।
दीखे दिनहि सरग महँ तारा ॥
डचते मप्पि लीन््ह, घुप चाँपे ।
लारा सरब जिड थरथर कॉपे ॥
जिर कहैं परे ज्ञान सब বু ।
तब होह मोख गहन जो छूटे ॥*
४-- जायस नगर मोर श्रस्थानू ।
नगर के नांव श्रादि उदयान् ॥
तकल दिवस दस पहने भाद ।
भा वैराग बहुत सुख पाएड ॥४
४--जायस नगर धरम अस्थानू ।
तहों आइ कवि कोनद बखानू ॥
६--एक नधनं कवि भुद्दसद गुती |
सोद बिसोह्दा जेइ कि सुनी ॥
७--जग सूका एके नयनां ।
उश्चा सूक जस नखतन्ह माषं ॥*
१ जा० यं पृष्ट ३८४
वही पृष्ठ ३८४५ ४ वही पृष्ठ १५
वही पृष्ठ ३८७ ५ वही पृष्ठ ९
९ वही
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