राजनीति विज्ञान के सिद्धांत | Rajniti Vigyan Ke Sidhant

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Rajniti Vigyan Ke Sidhant by डॉ. पुखराज जैन - Dr. Pukhraj Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजनीति विज्ञान को परिषादा, क्षेत्र तथा स्वरूप... 9 কযা समूह मात्र था, जो आगे चलकर कुलों और जनपदों मे विकसित हुए। यूनानी इतिहास में इन्ही को नगर-राज्य कहा गया है । धीरे-धीरे थे नगर राज्य परस्पर मिलकर सधो में सगठित होने लगे। यूनान के 'एथिनियत लोग” ओर 'एकियन লীগ इस प्रकार के सध राज्या के ही उदाहरण हैं। ध्रादीन भारत में इसौ प्रकार के नगर रा्यो ते -परझपर-सगठित होकए-वश्जि स्ध और 'अन्धकवध्णि सघ' का निर्षाण किया | इसके पश्चात्‌ विजय ओर पदाजय के चक्र ने हमे वर्तमान राष्ट्रीय राज्यों के युग में लाकर खड़ा कर दिया और वर्तमान समय में हम “विश्व सघ' कौ जस्पना: करने लगे हैं । 4 राज्य के इन बदलते हुए रूपो के माप ही छाप मतुष्य के राज्य विपयक्ष [विचारो भे भो परिवतेन हों रहा है। प्राचीन काल में राज्य और उसकी आज्ञाओं को वी समझा जाता था, लेकिन वर्तमान राजनीतिक विचारो_के अनुसार राज्य की যা आफ या कि কে के निहित न. होकर सर्वसाधारण निहित द्वोती है. राजनोति विज्ञान इस बात की भी वियरेचना करता है कि शूप ते (तिकः विचारों का विकास कंसे हुआ ओर इसे विकात ने राज्य के स्वरूप को लोक-प्रकार प्रभावित किया । लोक राज्य कै वर्तमान का _अध्ययन--ऐतिहासिक विकास के परिणामस्वरूप मान समय में राज्य एक विशेष स्वरूप को प्राप्त कर चुका है जिसे 'राष्ट्रोप राज्य कहा जाता है। आज की स्थिति में यह्‌ राष्ट्रीय राज्य भनुष्यो वा सर्वोपरि वे सर्वोष्कृष्ट समुदाय है और अन्य कोई भी समुद्याय राज्य से श्रतित्पर्दा नहीं कर सकता । राजनीति विज्ञान वर्तमान समय मे राज्य के स्वरूप, प्रयोजन, उद्देश्य ओर स: ह स्स > कार्यक्षेत्र के दो रूप ह--आन्त्र्कि और नही कर सकता ह षुः सौर 2 को स्थपत रुए/ पता, देशवासियों की चतुर्मुबी शयं स्वशासन का. कायं सनानेनः. राज्य ক, আন্নবিক विज्यातों के सन्दर्भ उदाहरणा, कालं पीर उष्य के बाह्म काशत के मन्तगत नयु सम्बन्ध. है और मेश्डूगले, हू तथा विश्वशाल्ति से सस्बन्वित समश्याओं का अध्ययन किया. मनोविज्ञान की ओण राशनौति ভিন, জন্ম का अध्यपंन--राज्य का अस्तित्व मानव जीवन को श्रेष्ठ रखता था, आम अपने योकि मावव जीवन ही श्रेष्ठठा की कोई सीमा नहीं ই, भौगोलिक आधारों को ४स्वरूप को अन्तिम तही कहा जा सकता है । वर्तमान समय বি প্রান राज्य के स्वष्प, उद्देश्य और कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में লাজ এপ किया जार रह्मा है । उशहरणार्य, समरयवादी विचार- भौतिक जीवन की पर्य द्वारा साधिक जीवन को भी नियन्त्रित किया जाना चाहिए इस क्षम मे राजनीतिकेशावादी विचारधारा के अनुभार राज्यहीन समाज की स्थापना. ये तो दे ससयाएँ है. व्यत्तिवादी राज्य के कार्यों को सीमित करने के यक्ष में हैं दो [লি मानव निर्मित अन्य समुदायों के समान ही समझते हैं। इन सबसे ॥




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