आँसू | Aansu
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad
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विश्वनाथ - Vishvanath
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)... प्रसाद का आनस्द बाद, निराला का अद्वत बाद, पंत कौ
आत्मरति तथा मद्दादेवी का मम छायावादी साहित्य
का को स्थायित्व तथा अमरत्व देने में समर्थ हैँ ऐसा मेरा विश्वास
छायावाद दशन की दुनियां में एक विशेष स्थान रखत्ता
है। चाया का दूसरा नाम माया है तभी तो कबीर ने गाया
. “छाया माया एक सम विरला जाने कोय | गता के पीछे फिरे,
. ठाढ़े सम्मुख होय । छब्दोग्योपनिषद मे इंद्रविरोचन और प्रजापति
की आख्यायिकरा का प्रारम्भ जिस प्रश्न से होता है बह আঁ ৪:
. “भगवन जो जलन में सब ओर प्रतीत होता है और जो दपर
. में दिखाई देता है उनमे आत्मा कोन है ।” यही प्रश्न डा० सत्य
प्रकाश के 'भ्रतिविम्ब' में सुखर हो उठा है “कर से एक सुकुर
ले कर के, करलो अपना ही दर्शन | आनन के प्रतिबिम्धों में
तुम छिप जाओ हे चंचल मन” | प्रश्न का समाधान उसी
आख्यायिका में यों हुआ हैः--इन्द्र यह शरीर मरणशील ही है
यमृष्युसे प्रप्त है, यह इस अमृत अंशरीरी आत्मा का
.. अधिष्ठान है। सशरीर आत्मा निश्चय ही प्रिय भ्रभ्रिय से
भ्रस्त है। सशरीर रहते हुए इसके प्रिय अग्रिय का नाश नहीं
होता, शरीरी होने पर इसे प्रिय अप्रिय स्पर्श नहीं करते।
योगिक क्रियाश्ों द्वारा मानव किस प्रकार इंद्रियातीत होता हैं।
इसका दिद्रशेन पातञ्चल योग दर्शन मे करे । पूरी व्याख्या इस
प्रसंग । म सम्भव नदी, आंस की व्याख्या करते समय थोग दर्शन
.. के मोटे मोटे सिद्धांतों की ओर संकेत किया गया है । साया
मं तिविम्ब इश्वर, নান यस्य भुवनानि दुगो! पर मनन करने
वाले जानते हैं कि माया भगवान के साथ छाया के समान रहती
.. हुई रृष्टि स्थिति और संद्ार करती रहती हैं। उपनिषदो मे
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