जैन हिन्दू एक सामाजिक दृष्टिकोण | Jain Hindu Ek Samajik Drishtikon

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Jain Hindu Ek Samajik Drishtikon by रतन चन्द मेहता - Ratan Chand Mehta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) आव्हान की अपनी भुभिका को इन्होंने भी क्रान्ति के प्रति सम- पित माना और नवयुवक सेदा मण्डल के माध्यम से कांग्रंस की क्रान्तिकारी नीतियों में गहरी आस्था होने का प्रमाण जीवन के आने वाले तमाम वर्षों में प्रस्तुत करते रहे । माव के चिन्ताजनूय पिच्छडेपन से प्रायः चिन्तित श्री मेहता ने वहां के जन-जीवन के विकास के लिये दो श्रन्‍्य संगठनों का - निर्माण किया 'जीव दया प्रचारिणी सभा” जिसके अन्तर्गत दूसरों के हितसम्बन्धी रचनात्मक कार्यक्रम भ्रपनाये गये तथा व्यापारिक शिक्षा संस्थान! जिसके अस्तर्गत वहां के युवकों,के भावी जीवन में व्यापारिक स्तर पर विकास की दिशा में सफल बनने के लक्ष्य से इन्होंने व्यापार के अभ्रनिवाय॑ लक्षणों तथा उसमें प्रगति की अपनी अभूतपूर्व व्याख्या प्रस्तुत की, जिसके साक्ष्य स्वरूप इनके इन्हीं सिद्धान्तों द्वारा निर्देशित कई युवक, जिन्होंने उस समय व्यापार की दिशा ग्रहण की थी, प्राज नि:सन्देह एक सफल व्यापारी बन सके । | आंदोलन के देशव्यापी अनुक्रम में स्वयं समर्पित श्री मेहता ने पूरी तरह गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में ग्राह्य माना और वीस वर्ष की आयु से आज तक वे उसी श्रद्धा के सहज क्रम में शुद्ध खादी वा प्रयोग करते चले श्रा रहे हैं। स्व- तन्‍्त्रता संग्राम इनके लिये भी एक चुनौती था और उसमें सक्रियं भाग लेने का उत्साह वे रोक व सके ; तथा कांग्रेस विचार- . धारा के समथेन-पालन में कई वार विभिन्‍न कठिनाइयों और यातनाओं को सहने के वाद भी श्रपत्ती श्रोजस्वली लेखनी से जन जीवन में व्यापक क्रान्ति चेतना भरने की अपनी श्रथक चेष्टा जारी रखी। काव्यप्रतिमा प्रायोगिक को इन्होंने शोपण और




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