भारतीय एवं पश्चिमी भौतिकवाद | Bhartiya Avam Pashchami Bhautikvad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भौतिकवाद का तात्पर्यं । १४५
तो पत्थर अदि जड वस्तुयें उत्पन्न होती है और वही परमाणु जब किसी दूसरे
प्रकार से मिलते है तो वृक्ष, कीठ, पु, पक्षी, आदि चेतन प्राणी बन जाते है ।
प्रणतच्व कौ न स्वेतन्दा सत्ता है और ते उसके अपने विशेष प्रकार के परभाणु
है । वस्तुतः भौतिकवाद के अनुसार जड़ता, प्राण या चेतना में कोई मौलिक भेद
नही है । उनमें केवल परमाणुओं के संयोग का भेद है ।
भौतिकवाद को चिन्तन प्रक्रिया विश्लेषणवादी है । इस मत के प्रतिपादक
बज्ञानिकों की भाति बाह्य जगत का विश्लेषण करके मूल तत्त्व तक पहुँचने का
प्रयास करते है । विश्लेषण के द्वारा उन्हे जो परमाणु मिलते है उन्ही के हारा
बे विश्व की उत्पत्ति मानते है उत्पत्ति में प्रकृति के कुछ नियम कार्य करते हे,
इसलिए वे नियम भी भौतिकवादी दाशेनिको कौ चिन्तन प्रक्षिया मे सहायक
होते है? अतः चिसघ्तन प्रक्रिया की दृष्टि से यह दर्शाव पद्धति विश्लेपण-
बादी है ।
भौतिकवादी दार्शनिक समाज की संरचना और मनुष्यों के आपसी व्यव-
हार की व्याख्या भी मानवी प्रक्ृति के नियमों से करते हैं। मनृष्यों के व्यवहार
और सम्बन्ध उनके व्यक्तिगत प्षम्पर्क से होते है और व्यक्ति भौतिक द्रव्य का
समुच्चय है। इसलिए समाज भी भौतिक और प्राकृतिक सम्बन्धों का संगठित
रूप है यद्यपि समाज में भावात्मक सम्बन्धों का बाहुल्थ रहता है, व्यक्तियों के
बीच राग-द्रेष की भावनाये रहती है किन्तु उतर सब का मूल कारण भौतिक पदार्थ
ही हैं।
भौतिकवादी समाज मे नीतिशास्त्र भी उसी के अनुकूल मान्य है। उसमे
शारीरिक और इन्द्रिय सुख ही प्रधान मात्रा जाता है । इसे भौतिकवादी सुख
वाद कहते है। विचारवान भौतिकवादी कुछ सयम और परहित का भी
ध्यान रखते है। वह अधिक सभ्य तक निर्वाध रूप से सुख भोगते में सहायक
होता है ।
इस मत के अनुसार ममृष्य को अपना सारा जीवन शारीरिक सुख पाते
के और भोगने के प्रयास में लगा देना चाहिये | यही उसके जीवन का चरम लक्ष्य
है। मरते के बाद शरीर परमाणुओं मे विधटित हो जाता है और जीवन दीपक
की भाँति बुंझ जाता है। यही उसका লিলশুদ ই 1 मरने के बाद स्वर्ग, नरक या
मुक्ति की कल्पना निराधार है। देवताओं की आराधना और पूजा में समय नष्ट
करना मू्खेंता है। उससे इस लोक या परलोक में कुछ भी मिलने वाला नही है ।
बह एक प्रकार से आत्म प्रवचना है | कुछ चतुर लोगों ने अपना स्वार्थ सिद्ध करने
के लिए समाज में परलोकवादी धर्म का मिथ्या प्रचार कर रखा हैं। विचारवात
मनुष्यों को उनसे सावधान रहूता चाहिए ।
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