आनन्द गायत्री - कथा | Aanand Gayatri - Katha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Aanand Gayatri - Katha by आनंद स्वामी - Aanand Swami

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आनंद स्वामी - Aanand Swami

Add Infomation AboutAanand Swami

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१९ आनन्द गायत्री-कथा ता वे लोक ही लोक की चिन्ता करते हैं या परलोक ही परलोक की।या তা ঘন को भूलकर मिठाइयों से बातें करते रहते हैं, या या का भूलकर भक्त से दोनों ही अ्रवस्थाश्रों में भक्त उपालम्भ देता है। यह संसार मिठाई और फल है। परमात्मा वह সা जिसने इस फल और मिठाई को हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया । नो का ध्यान रखना चाहिए; दोनों में से किसी को भी भूलाना धरम नहीं, त्यागना धर्म नहीं । को कुछ मनुष्य कह सकते हैं--यह तो अत्यन्त कठिन है । ईश्वर ओर संसार दोनों को साथ-साथ केसे रक्खा जा सकता है ? एक को भूले विना दुसरे को श्रपनाया कैसे जा सकता है ? किन्तु भाई सुनो तो ! कठिन कुछ नहीं । वेद भगवान्‌ ने इसका मार्ग भी वताया है । यजुर्वेंद' के ४०वें अ्रध्याय में भगवान्‌ अ्रपत्ती श्रमृत- वाणी के द्वारा कहते हैं, त्याग से भोग कर ! ' ह अर्थात्‌ भोगकर इस संसार को प्रयोग में ला। धन संचय कर, शिक्षुओं का पालन कर, मकान बना, व्यापार चला, राज्य प्राप्त कर, शक्ति बढ़ा, सम्मान के लिए संघर्ष कर, सबको ग्रहण कर, किन्तु व्याग की भावना से ! कारावासी कारावास के कपः और बर्तन प्रयोग करता है! उन्हें स्वच्छ भश्रौर सुथरा रखता है सँभालता है, प्रयत्व करता है कि कोई चुराकर न ले जाए; किन्तु जब वह कारावास से मुक्त होता है, तब क्या अपने कम्बल से, अपने बर्तनों से, अपनी कोठरी से लिपट-लिपटकर रुदन करता है ? इन पदार्थों को चिपटाता है ? नहीं, क्योंकि बह कभी उन्हें श्रपता नहीं समझता है। यह है त्याग से भोग करने का লিসা । धन-संचय अवश्य करो, भवन-वनिर्माण करो, सन्तान की रक्षा करो, किन्तु जब विधवाएँ पुकार उठें, जब दुःखी जन चिल्ला उठें, जब अनाथों के अश्रुपात हों, जब देश पर, धर्म और जाति पर आपत्ति श्रा जाए, तब वस्तुओं को तुच्छ समभकर त्याग दा। यह है त्याग से भोग करने का श्रभिप्राय।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now