फैसिज्म की आत्मा | Fascism ki Aatma

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Faisijm ki Aatma  by टी. एन. कुचुत्री विमल कैैरलीय - T.N. Kuchutri Vimal Kairly

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यू १० 1 चूसनेवाले शासक वर्ग केवल अपने स्वार्थ की रक्षा करना चाहते. थे । कृषक, मजदूर तथा अन्य पेशा करनेवाली साधारण जनता को कठिन परिश्रम करने पर भी अपने पेट भरने के लिये कठि- नाई पड़ती थी । शासक वर्ग ने अपनी प्रभुता को कायम रखने और अपने अन्यायों को छिपाने के लिये समाज-संगठन के साथ ही धर्म, सभ्यता, आचार, व्यवहार; नीति, न्याय इत्यादि की खष्टि की । जिनकी उत्पत्ति पहले नहीं हुई थी। सम्यता; शासन, नियम झादि की खष्टि शासक-बर्ग ने अपने. अन्यायों का समथंन कराने के लिये किया था । शोषित जनता शासकों के द्वारा सब तरह से दबायी जाती थी और वह दलित थी । शासकों ने उसको असभ्य और अस्पृद्य बताकर विद्या, ज्ञान और बुद्धिविकास से वंचित रखा । इस कारण भोल्नी भाली. जनता झपने ऊपर होने वाले जुल्मों को पहचान नहीं सकी और सभी ने अपनी शोचनीय दशा को भाग्य का दोष समझ लिया. आधुनिक समाज जिस सभ्यता, संस्कृति, आचार, व्यवहार ओर नीति-न्याय के आधार पर चल रहा है; वह इन्हीं प्रारंभिक संभ्यतादि का विकसित रूप भाग है । शोषक के अन्यायपूर्ण प्रभुत्व को स्थायी रखने के लिये रची गयी इस पभ्यता के असभ्यता, आचार व्यवहार को अनाचार; संस्कृति _ को छकु्सस्कृति, राज नियम तथा नीतिन्याय को अनीति ही. .. हम कह सकते हैं । जबसे समाज का संगठन हुआ, तब से : मी की के ब्त कर हे दे व. हु 5, कि . शासक वर्ग या शोषक वर समाज के ऊपर इन्हीं




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