प्रगतिवादी साहित्य में सामाजिक द्वन्द | Pragatiwadi Sahitya Me Samajik Dwand

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Pragatiwadi Sahitya Me Samajik Dwand by सुषमा अग्रवाल - Sushama Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुस्तुत फिये गए हैं। “काले उत का पाधा मेँ मध्यवर्गोंद समाज को विषमता, काति, तृनापन, अतोंब आदि का हुन्दर एवं मार्मिक चित्रम किया गया है। राजेन्द्र धा दप राजेन्द्र जी के उपन्यास स्वतंत्रता प्राश्ति के पश्चात आये। राजेन्द्र जो के उपन्यास मर्म का प्रतिनिद्यत्व करते हैं। 'ऐल बोलते 7 उचडे हए लोग” 11956॥ कुलटा गृह और मात” तथा गंत्र विद119674 आदि इसी तरह के उपन्यास है।इन उपन्यातों में सा शाजिक विघटन ,पूंजी और तत्ता के अनैतिक गठबँधन, াখীল संस्कार হ়িঘী औरपरम्पराओँ और नव जागरण ते तंव करतौ नयौ पोदौ का चित्रण ह) राहुल सकत्यान जी के सोने को दाल विस्मृति वे गर्म में, जोने के लिये आदि उपन्यास उतो ना के उपन्यास इस प्रकार प्रतिवादी उपन्यासो के एक बाद লী জা गई और कई वर्षों तक उपन्यातत के माध्यम ते वर्तमान धिम परित्यितियों जे जज्चकती सतामाणशिक द्वन्द्ध में फंसी निहैह जनता का चित्रण किया जाता रहा । कह न[- केहानी का सिलसिला भी उपन्यास कौ भांति प्रेमवन्ट जी से हो झुछ ही जाता टै प्रेमचन्द जी तो कहानो लेबन मेँ सम्राट थे किन्तु उनकी कहानियाँ ग्रामोण जीवन कौ कहानी तो कहतो थौँ, निम्नवर्ग का प्रतिनिधित्व करती वो, गरीबाँ को शाकी प्रस्तुत करती या কিল্ত মাস संघर्ष करते करते मर जाते ये छुला च्छ नह फेर पाते ये किन्तु ऐसा नहीं কি फिसी कहानी में ये भावना आयी हौं न्वै कुछेक कहानियों টা হাল चिद्रौः भी करते हैं उदाहरण के लिये “कफ कहानी में करायी कुछ विद्रोह की भावना है ओर सामाण्कि चिभमरता पर व्यंग्य भी है किन्तु जित क्राति को जावश्यकता थो उत्ते पूरी करती ह पापात जौ की कशानियाँ- यज्माल जी जीवन भी वाह्तचिकता का वर्णन बड़ी निर्ममता मे करते हैं। वर्तमान समाज प्यतस्था में पा, नैतिकता, प्रेम, न्याय, इज्जत सबके पीछे आ थिंक _हवार्थ निहित हैं, इस तत्य को यश्याल जो समझ गए थे और यहाँ उनके कहानी का कथ्य




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