उद्योग प्रारब्ध विचार | Udhyog Prarabdh Vichar

Udhyog Prarabdh Vichar by पं. स्वामीगोविन्द सिंह - Pt. Swami Govind Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विश्नाम २ दैवं विहाय कुर पौरुषमात्मशत्तया यते कृते यदि न सिध्यति कोप दोषः॥ १२॥ भावार्थ-सिहसद्श उद्योगी पुरुष ही को से सखदाए प्रातहोती हैं ॥ ` केव दही प्रधान है यह कहना कुत्सितो ( नीचपुर्षो ) का है ॥ इसडिये दैवको साशाकों छोडकर है पु्नो! प्रयक्त करो और यदि तुम्हारे बुद्धिवतसे कदापित्‌ कोई कार्य न सिद्ध हो तो सूह्षमद॑ष्टित पुनः विचारों कि कौन दोष জান का प्रतिबन्धक्ष है यदि उस दोपका प्रतीकार तुम्हारेसे होसके तो पुतः उसी कार्यका प्रास्म कर पूरणी करो न होसके तो उस काधमो छोड कायोनतरं प्रहृत होवो खप्रयलको सफरीमूत को ये पूर्वोत्त यावत्‌ शेक महर्षि व्यातादिप्रोक्त पर्मशाल्लोंके हैं और युक्तियुक्त ইনি पुरपको ' अत्यन्त उपदेय ह इतना कहकर उस दिन प्ष्डितजीने कथाकी समाति कर अति अलकाखके कारण राजुमार उस दिन सुपरहा पर्तुपूवोक्त शोकोको श्रवण कर अति असंतुष्ट होकर सकौय प्रासादमं प्रविष्ट हुआ | ११॥ पहिछा विश्राम समाप्त, दितीयविश्राम । दूसरेदिन कथा प्रार्मसे पर्वही राजकुमारने पण्डितसे वार्ताछझपका प्रारभ किया छुमारकी ऐसी चेष्टको देखकर राजाके तथा पण्डितके चित्तको- अति संतोष हुआ और अपने उद्देशको साध्य समझा || ( राजकु० ) क्या पण्डितजी दैवको माननेवाले सभी कुत्तित अधम मीच पल हैं॥ अनेकऋषि मुनियोंने दैवकों प्र कथन कियाहै | तथा उत्तम २ उदाहर दिखाया | प्रथम देखिये श्रीकृण देव ही गीताके ( २ ३ अध्यायके (९) वें छोकों क्या लिखते हैं|. , नहि कम्ित्‌ क्षणमपि जातु तिहत्यक्मकृत ॥ ` क्ये द्वश कमं सवः प्रकृतिजेगुणेः ॥ १॥




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