उद्योग प्रारब्ध विचार | Udhyog Prarabdh Vichar
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विश्नाम २
दैवं विहाय कुर पौरुषमात्मशत्तया
यते कृते यदि न सिध्यति कोप दोषः॥ १२॥
भावार्थ-सिहसद्श उद्योगी पुरुष ही को से सखदाए प्रातहोती हैं ॥
` केव दही प्रधान है यह कहना कुत्सितो ( नीचपुर्षो ) का है ॥ इसडिये दैवको
साशाकों छोडकर है पु्नो! प्रयक्त करो और यदि तुम्हारे बुद्धिवतसे कदापित्
कोई कार्य न सिद्ध हो तो सूह्षमद॑ष्टित पुनः विचारों कि कौन दोष জান
का प्रतिबन्धक्ष है यदि उस दोपका प्रतीकार तुम्हारेसे होसके तो
पुतः उसी कार्यका प्रास्म कर पूरणी करो न होसके तो उस काधमो छोड
कायोनतरं प्रहृत होवो खप्रयलको सफरीमूत को ये पूर्वोत्त यावत् शेक
महर्षि व्यातादिप्रोक्त पर्मशाल्लोंके हैं और युक्तियुक्त ইনি पुरपको ' अत्यन्त
उपदेय ह इतना कहकर उस दिन प्ष्डितजीने कथाकी समाति कर अति
अलकाखके कारण राजुमार उस दिन सुपरहा पर्तुपूवोक्त शोकोको श्रवण
कर अति असंतुष्ट होकर सकौय प्रासादमं प्रविष्ट हुआ | ११॥
पहिछा विश्राम समाप्त,
दितीयविश्राम ।
दूसरेदिन कथा प्रार्मसे पर्वही राजकुमारने पण्डितसे वार्ताछझपका प्रारभ
किया छुमारकी ऐसी चेष्टको देखकर राजाके तथा पण्डितके चित्तको- अति
संतोष हुआ और अपने उद्देशको साध्य समझा ||
( राजकु० ) क्या पण्डितजी दैवको माननेवाले सभी कुत्तित अधम मीच
पल हैं॥ अनेकऋषि मुनियोंने दैवकों प्र कथन कियाहै | तथा उत्तम २
उदाहर दिखाया | प्रथम देखिये श्रीकृण देव ही गीताके ( २ ३
अध्यायके (९) वें छोकों क्या लिखते हैं|. ,
नहि कम्ित् क्षणमपि जातु तिहत्यक्मकृत ॥ `
क्ये द्वश कमं सवः प्रकृतिजेगुणेः ॥ १॥
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