विकास की कहानी | Vishwa Ki Kahani

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Vishwa Ki Kahani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. জাগি উলা-স্দ পন है छा 18250 वि न „= के १ = ५ ॥ ~ ५ ॥ ক হানা কই 52 विश्व ঘা নালা ६ ০০ ১৮২ क जन कि “पतननन ५ + ७४१५० ^ ~ ১৮৮ পাপা শী সাপ পপি শা ০ न न कर बग़लवाले ख़ाली माग के स्थान पर आ जाता है। ६” और “ज! से परावत्तित होकर अठपहल के एक दपण अवश्य इतनी ही देर में आलोक ने पहिए और नतोदर दपंण से परावत्तित हो दा पर पड़ती हैं। यहाँ सेयेनिरी- ` के बीच की दूरी का दूना फ़ासला तय किया। अतः आसानी. क्षुक की दूरबीन में प्रवेश करती हैं | से इस रीति से आलोक की गति आँकी जा सकती है। . इस प्रयोग का सिद्धान्त समझना कुछ विशेष कठिन नहीं. ` . फ़िज़ों के पहिए में ७२० दाँत थे। उसने देखा कि है| प्रयोग आरम्भ करते समय विभिन्न दपण तथा वूरदशक ` पहिए को उसे प्रति सेकएड १२६ बार घुमाना पड़ता इस प्रकार रक्खे जाते हैं कि आलोक-रश्मि अठपहल के था; तब दपण/के, सराज़ में. ाइाा ाताकप | = दया ०.९. से पातित ~ पहली वार रषे दिखाई देता होकर अन्य समतल तथा नतो- ५ था | इस समय पहिए ओर नतोंदर दपणु के बीच को लगभग ५ मील थी ८} द्र दपण द्वारा परावत्तित होती है | फिर .अठपहल के হপহ্য न० “* से परावात्तत पर रश्मि को अर दपपण अपने पूववत्‌ दूरस्थ दपण से रश्मि ने अठपहल के दपण | नं० १ को छेदा था; उस হি টি মি




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