सोवियत गणराज्य संघ तथा स्विट्ज़रलैंड की शासन प्रणाली | Soviet Ganrajya Sangh Tatha Switzerland Ki Shasan Pranali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Soviet Ganrajya Sangh Tatha Switzerland Ki Shasan Pranali by हरि मोहन जैन - Hari Mohan Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरि मोहन जैन - Hari Mohan Jain

Add Infomation AboutHari Mohan Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| ধা | '“थार्टी | क्तेंशन में अतिवादी बहुमत में थे अतः वह अपने को बाल्शेविक कहने - ज्ञगे); दूसरे, नसम विचारले (१०61868) जो कि मैनशेविक (106115126- ५ ही । ॥ ॥ | টি নিত কী & हक + * त गण-राज्य संघ का संविधान कक * भ # 0२८८९) को होती थी जो कि स्थानीय जनता द्वारा चुने जाते ये} किर ब्रादिशिक तथा भ्रमण खैयालय (०।०एा ०५०7७) होते ये और अन्त में सकर न्पायालय जो कि, राजघानी,में स्थित था (३) ९८६४ मे स्थानीय हासनीय संस्थाओं की स्थापना | इनका नाम ्ेमस्योव (26018६08) रखा : ब्या इनमें किसानों, नगरवासियों एवम्‌ सामन्तो के प्रतिनिधि होते ये। कुछ हो दिनो क्धेचाद्‌ स्थानीय स्वशासन कौ इस प्रकार कौ संस्थायें नगर-परिषदों के रूप : मैं नगरों में भी स्थापित की गई, | इनको ड्यमा (10179) कहते थे । उप्नीसरवी शताब्दि के अन्त में ओद्योगिक क्रांति के परिणाम के फलस्वरूप ख मे मी मध्यम-वर्ग (7110018 ०७55) का सृजन होने लगा। यह वर्ग जिसमें डाक्टर इंजीनियर, वकील, प्रोफेसर, बेंकर, व्यापारी इत्यादि এ রর सम्मिलित होते हैं सुधारवादी तथा उदारवादी होता है। यूरोप “के लगभग सभी देशों में स्व॒तंत्रता तथा संवैधानिक सरकार (कण्ण इणण्दप्यालयधे के आन्दोलन का नेतृत्व इसी बर्ग ने किया । अतः रूस में भी ऐसी विचारधारा वाले क्रान्तिकारी गुट बनने लगे । ' ह्वामाविक रूप से असंख्य किसान जो कि खेतों को छोड़ कर मिलों कारखानों में ' अज्भदरी करने लगे ये इनकी ओर आकर्षित हुये | परिणाम यह हुआ कि १८६८ वी मे रूस-खामाजिक-प्रजातंजवादी-दल (०७७2० 90012] [26010671 एफ) का জন্ম ভগ্গা | হাঁস হী অহ হত হা भागों में विभक्त हो गया--एक अतिवादी, नो कि बल्िविक कदलाये (बौल्शिविक के शाब्दिकं श्रथ ই बहुमत ;5) कलये क्योकि पार्य कन्वशन में इनका च्ल्प मत था 1 १६०५ मे जापान जैसे छोटे से देश के हाथों जो रूस की मानहानि हुई उससे इन आन्दोलनकारियों को प्रशासन की निन्‍्दा करने का अच्छा अवसर प्रात हुआ । परिणाम यह हुआ कि ज्ञार निकोलस द्वितीय १३०१ के सुधार (१८६४-१६१७) को मजबूर होकर अक्तूबर १६०५ में एक | घोषणा ((४111168(0) प्रचलित करनी पड़ी जिसमें उसने श्रपनी प्रजा को मषा, घर्मं तथा अन्य प्रकार की स्वतंत्रतायें प्रदान कंरने का बचन दिया और साथ दी एक रूसी संसद (ब्यूमा 10118) के निर्वाचन की भी এও , प्रोपणाकी। “^ ॥ | इस घटना को एक क्रान्ति कहा गया है। वास्तव में ऐसा.कहना श्रति- श्युक्ति होगा । यद्यपि इसमें सन्देह नहीं कि जनतंत्र की दिशा में रूस में यह प्रथम




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now