हजारी प्रसाद द्विवेदी | Hajaarii Prasaad Dwivedi

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Hajaarii Prasaad Dwivedi  by विश्वनाथ प्रसाद तिवारी - Vishvnath Prasad Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी, व्यक्तित्व और युग 15 फिरिसने आर हजार दाने येन रे तोर हृदय जाने हृदये तोर आपन राजा' अब अन्तर्यामी भी जागे । फिर गुरुदेव बोले - मत जाओ । सब ते हो गया । जो बात स्वार्थ की दृष्टि से देखने से इतनी उलझी हुईं लग रही थी वही कत्तंव्य की दृष्टि से देखने से एकदम साफ़ हो गई । इसमें क्या सोचना है भला ! मेरे लिए दोनों ही संस्थाएँ आराध्य हैं। दोनों का लक्ष्य एक है, मेरे भीतर कर्तव्य का द् र्द्व क्यों उपस्थित हो ।! इस प्रकार [948 में द्विवेदी जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निमन्त्रण पर न आ सके किन्तु दो वर्ष बाद पुनः जव निमन्त्रण मिला तो द्विवेदी जी फिर पेसो- पेश में पड़े । 30-5-50 को सुमन जी के नाम पत्र में द्विवेदी जी अपनी मनःस्थिति के बारे में लिखते हैं : “अपनी स्थिति आपको बता दूँ | पिछले दो-तीन वर्षो से मुझे बाहर से कुछ निमन्त्रण मिले हैं और हर बार विश्वभारती के अधिकारियों का आग्रह भी मुझे रोक लेने के पक्ष में बढ़ता गया है। पिछली बार बिहार सरकार ने बुलाया था । उनका पत्र नवम्बर में आया । उन्होंने ग्रेड बदलकर मुझे 755-30-1000|[- आफर किया। मैं उन दिनों बीमार था । रथी वाब्‌ ने स्वयं रोकने का प्रयत्न किया और मेरे लिए उन्होंने एक ऐसा प्रस्ताव पास कराया जो विश्वभारती की आधधिक स्थिति देखते हुए कठिन ही था। मुझे 400-+-30/ वेतन दे रहे थे । अब और 3३ हजार रुपए बाधिक एक्स्ट्रा रिम उनरेशन के बढ़ा दिए । सो भी अप्रैल 1949 से । इस समय हिसाबन मुझे सवा सात सौ के आसपास मिलते हैं। यह वेतन विश्वभारती में सबसे अधिक है | श्री क्षितिमोहन बाबू और नन्दलाल बाबू से भी अधिक । यह मुझे रोक रखने के आग्रह का आभात्त आपको देगा । मैं बिहार नहीं गया । विश्वभारती के विश्वविद्यालय रूप में स्वीकृत होने की आशा है । मुझे 1000|- वाले ग्रेड में रखेंगे, यह यहाँ के अधिकारी कह चुके हैं । मकान मेरा बड़ा किया जा रहा है। आप जो देख गए थे उसमें दो और कभरे बढ़ाए गए हैं। एक स्तानागार और शौचालय भी | भाड़ा पहले 8|- देता था । अब्र शायद कुछ बढ़ जाए। 6 बच्चे करीब मुफ्त शिक्षा पाते हैं। यह स्थिति है। अब काशी विश्वविद्यालय के विषय में अपना मत कहूँ। काशी का वह 1. वही, पृ० 130-31




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