मध्य गांगेय मैदान में संस्कृतियों का उद्भव एवं विकास प्रक्रिया | Madhya Gangey Maidan Me Sanskritiyon Ka Udbhav Evm Vikas Prakriya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
70 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय
मध्य गांगेय मैदान की स्थिति, भौगोलिक परिदृश्य, जलवायु,
वनस्पति और जीव जगत्, जल-स्रोत, सांस्कृतिक अनुक्रम
गंगा नदी भारत की अद्भुत सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं अपितु सदियों से
भारतीय जनमानस की प्रेरणा का स्रोत रहीं है। अपने अपवाह क्षेत्र में महान
संस्कृतियों का उतार चढाव ओर मानव की उन्नति-अवनति की गाथा समेटे हुए
इस पवित्र सरिता की महत्ता का वर्णन आदि काल से न केवल पौराणिक,
अध्यात्मिक साहित्य में मिलता है अपितु लौकिक साहित्य मे भी इसकी विशिष्टता
एवं महत्ता की अनेकानेक कथाएं ओर अन्तर्कथाएं प्राप्त होती हँ । समय-समय पर
भारत में आने वाले विदेशी यात्रियों ने भी अपने यात्रा संस्मरणं ओर पुस्तकों आदि
मे तत्कालीन भारतीय जनमानस में व्याप्त इनकी महत्ता का विस्तरत वर्णन किया हे।
यह प्राचीनतम काल से भारतीय संस्कृति की एकता एवं पवित्रता की
प्रतीक मानी गई है | लोक कथाओं तथा परम्पराओं मेँ इसे शक्ति देने वाली “गंगा
माता” कहा गया हे । गंगा प्रारम्भ से ही भारतीयों का आकर्षण रहीं है । चिरकाल
से भारत की सांस्कृतिक एकता का यह बंधन इतना अट्ट तथा शक्तिशाली है कि
कोई भी शक्ति इसे नष्ट नहीं कर सकी | जन मानस में ऐसा विश्वास है कि गंगा
के दर्शन मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है | गंगा की दैवीय उत्पत्ति से सम्बन्धित
अनेक कथाएं एवं किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं |...
प्राचीन भारतीय साहित्य में गंगा की परिकल्पना देवी के रूप में, श्वेत वस्त्र
पहने हाथ में कमल लिये हुए तथा मकर पर बैठे हुए, की गई है । ब्रहमवैवर्त
पुराण में शिव को गंगा .की प्रशंसा में गीत गाते हुए वर्णित किया गया है । गंगा
पापों से प्रायश्चित्त कराने का माध्यम है । जन्मजन्मान्तर से पापियों द्वारा किये गये
| पाप के ढेर को भी गंगा को स्पर्श करती हुई वायु नष्ट कर देती है । जिस प्रकार
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