ब्रह्मचर्य और आत्मसंयम | Bramachary Aur Aatmasanyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सचमुच यद्द स्थिदि दृदय को पिघला देनेवाली है। बहुतेरे
जोगों की पेसी दी दशा रददथों है; परन्तु जब त्तक मन के भीतर
इत विचारों के प्रति संग्राम जारी बता है, तब तक डर फी कोई
নান লহ है। यदि आँख प्पराधिनी दो, तो उत्ते दंद फर
- लिमा चादिए, यदि कान अपराधी हों, तो उम्र भी रूई से बंद
कर् देना चाद्िप, श्योख नीवे करे चलना भयस्कर হ্রীলা ই।
इस प्रकार दूसरी ओर देखते का अवकाश द्वी न मिलेगा। जहाँ
* ंदी बाएं हो रदीद हों, गंदे गाने गाए जञा रहे हों, वहाँसे उठ
! कर भाव आता चादिए। अपनी रसना पर भी ,खूब अधिकार
रखना चादिए ।
मेत्रा निश्नी झनुभन्न तो यह दैक्रि जो ग्सना को नहीं ज्ञीत
सका, बह विषय पर विज्ञय नहीं पा सकठा। 'रसनों पर विजय
प्राप्त करना बहुत कठिन है। परन्तु जब इसपर विज्नय मिल
ज्ञाती है, तभी दूसरी विज्ञय मिल्नना संभव है। रसभा पर विज्ञय
भाप्त करने के लिये पदला साधन तो यद्द है कि मछालों का पूर्ण
रूप से या जितना संभव हो, त्याग किया जाय) दृषय साधन
इससे अधिक प्ोरदार है। वह यह कि इस विचार की वृद्धि सदा
की जाय कि हम गसना की तृप्ति के लिये नहीं, वरनु আীনল- হা
के लिये अआद्वार करते हैं । दस स्ताद के लिये वायु नहीं यहण
करते, वरन् श्वास लेने के लिये खैते हैं । पानी दम केवल पिपासा
शांत करने के लिये पीते हैं। इसी प्रकार भोजन भी केवल भूख
मिटाने के भिये द्वी करते हैं । हमरि माता-पिता वचपन से ही
इसके विपरीत आदठ डाल देते हैं। दमारे पालन के लिये नहीं
अरन् अपना प्यार प्रदर्शित करने के लिये वे भांति-मांति के स्वाद
चलाकर हमे नष्ट कर डालते हैं । ऐसे वातावग्ण का हमें विशेष
करना पेम । परन्तु विपयाशकति पर विज्ञय पनेके लिये स्वर्ण `
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