विधि एवं समाज के मूल सिद्धांत | Principles Law And Society

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Principles Law And Society by एस के पुरोहित - S K Purohit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विधि की ग्रवघारणा ] ( 9 3 के तत्व--कानून की परिभाषाओ्र एव विचारघाराओ के विश्लेषण वरन से स्पष्ट होत है कि कानून के प्रमुख निम्नतत्व होते है (1) कानून के लिए नागरिक समाज का अस्तित्व श्रावश्यक है क्योकि समाज ही एक सुव्यवस्थित सगठन ह और इस सगठन को सुचारू रूप से सचालन हृतु ही नियमा वी आवश्यकता हांती हैँ 1 (2) कानूनों के निर्माण तथा उनकी क्रिया वति के लिए एक सम्प्रभुत्व पूण सत्ता का भ्रस्तित्व होना आवश्यक है । (3) कानूना वा सम्बंध व्यक्ति के बाह्य आचरण से होता है, उनकी आ तरिक भावनाओं से मही । (4) नागरिकों को कानून का झ्रनिवाय रूप से पालन करना होता है, और कानून का उल्लघन करन पर वे राज्य द्वारा दण्ड के भागी हूते हैं। (5) कानून ऐसा होना चाहिए, जिनका पालन न केवल दण्ड के भय से নহন্‌ सामाजिक हित वी भावना से किया जाय । इस प्रकार कानूस एक निश्चित तथा उ चतर सानव का आदेश मात नही होता, भौर न ही इसे स्थिर और मानव जीवन की आवश्यकताओं से पृथक ही क्या जा सकता हैं । कानून की एक धारणा के झतगत यह्‌ स्वीकार करना पष्ट गा कि राजनीतिक शासक की सत्ता कानून का वधानिक मायता प्रदान करती हैं परतु उसका यथाथ स्वन्प देश के एतिहासिक बातावरण तथा समाज वी नतिकता का परिणाम होता हू । कानून प्रगतिशील होता है और अपने आपको जनता के नंतिक आधिक तथा धामिक दृष्टिकाण के अनुकुल बना लेता है । बानून का पालने वरना अनिवाय होता ह और उस क्रिप्राबित करते के लिए शक्ति का प्रयोग किया जा सकता हू । यदी कातून की सदसे बडी ,विशेषतरा है। पराद वास्तव मे, कानून का मुख्य पालन उसकी अनिवायता नहीं, ह, वरन्‌ लोग काबून का पालन स्वेच्छा से ही विया करत हूं । लास्की के थनुसार-- कानून दी सामातिक षन्ति कामूल उत्मस है स्वतत्रता का मूत्य कानुन द्वारा सुरक्षा है। कातुन की अनुपस्थिति म राज्य बहुत ही कम समय दब जीवित रह सकता है। कानून 7 विना समाज मे श्रराजक्ता फल जाती है | बानून समाज का न वेवल निय प्रक है बल्कि वह सयोजक भी है। इसके द्वारा अधिकार आर कर्तव्या मे समादय स्थापित होता है। सावजनित कल्ज़ाए प्राप्त करने वा वादुन मह्दपूण् साधन है) कानून राजकीय प्रगति का




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