ग्रामीण हिंदी | Gramiyan Hindi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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य्ासीण दिन्दों नाम दिया हैं किन्ठु खड़ी बोली नाम बेहतर है । कभी कभी ब्रजसापा तथा अवधी आदि प्राचीन साहित्यिक भाषाओं के सुक्ाबले में आधुनिक साहित्यिक हिन्दी के थी खड़ीबोली नास से पुकारा जाता हैं ।” साहित्यिक अथ में प्रयुक्त खड़ीबोली शब्द तथा माषाशास्त्र की दृष्टि से प्रयुक्त खड़ीवोली शब्द कि, के इस भेद के स्पष्ट रूप से समभक लेना चाहिये । दननमसन्परिन बलनरपननपपयाररगगण ५७००४ ०सएएएएएसएलएएए १ इस अर्थ में खड़ीबोली का सब से प्रथस प्रयोग लह्नजी लाल ने प्रेमसागर की भूमिकों में किया है। लक्नू जी लाल के ये वाक्य खड़ीवोली शब्द के व्यवहार पर बहुत कुद प्रकाश डालते हैं झतः उ्यों के त्यों नीचे उद्धृत किये हि जाते हैं | आाइनिक साहित्यिक हिन्दी के दादि रूप का थी री द॒ उद्धरण श्रच्छा नमूना दे । लज्नू जी लाल लिखते हैं--''एक समें ब्यासदेव कृत श्रीसत भागवत के दशसरकेंघ की कथा को चतुभुज मिश्र ने दोहे चौपाई में बजभाषा किया । सो पादशाला के लिये श्री महाराजाधिराज, सकल गुणनिधान, पुण्यवान, सद्दाजान सारइइस वलिजद्धि य पद




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